गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

कांग्रेस ने किया 'संघ दर्शन'

 इं दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय पर एक रोचक वाकया घटित हुआ है। इसकी चर्चा सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में हो रही है। कांग्रेस ने 22 फरवरी को मध्यप्रदेश के संघ कार्यालयों पर तिरंगा फहराने की योजना बनाई थी। इस कार्यक्रम के पीछे कांग्रेस की मंशा क्या रही होगी, यह कांग्रेस की संघ विरोधी मानसिकता के आधार पर समझा जा सकता है। कांग्रेस ने सोचा होगा कि संघ के कार्यकर्ता कार्यालय पर तिरंगा फहराने का विरोध करेंगे। लेकिन, हुआ उल्टा। इंदौर के रामबाग स्थित संघ कार्यालय 'अर्चना' में स्वयंसेवकों ने कांग्रेस नेताओं का 'लाल कालीन' बिछाकर स्वागत किया। तिलक लगाकर कांग्रेसियों का अभिनंदन किया। कार्यालय पर तिरंगा फहराने में उन्होंने कांग्रेस नेताओं की मदद की। झंडावंदन के बाद स्वयंसेवकों ने कांग्रेस नेताओं को अल्पाहार पर आमंत्रित किया। इस दौरान संघ के संबंध में कांग्रेस की भ्रामक धारणाओं को दूर करने का प्रयास भी किया। संभवत: कांग्रेस के वर्तमान नेता यह भूल गए होंगे कि सेवानिष्ठा, अनुशासन और राष्ट्र के प्रति समर्पण में संघ के कार्यकर्ताओं का आदर स्वयं कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता करते हैं।

सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

क्या संसद में काम होगा?

 अ गले कुछ ही दिनों में संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला है। देश में विचार-विमर्श जारी है कि इस सत्र में बजट प्रस्तुत होने के अलावा कुछ और काम हो पाएगा या नहीं? पिछले सत्रों में जनप्रतिनिधियों का जैसा व्यवहार देखने में आया, उसके हिसाब से आशंका बलवती होती है कि संसद में कुछ काम भी होगा? अब तक कांग्रेस के नेतृत्व में समूचे प्रतिपक्ष ने सत्तापक्ष के प्रति घनघोर असहिष्णुता का प्रदर्शन किया है। संसद में जनहित के कुछ काम हों, सत्तापक्ष ने इसके लिए अनेक प्रयास किए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चाय पर भी बुलाया। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सत्तापक्ष के सदस्यों से संयम दिखाने का आग्रह किया। सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चल सके इसके लिए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी सभी दलों के सांसदों से व्यक्तिगत आग्रह किया। सरकार ने प्रतिपक्ष की मांग पर गैर जरूरी विषय असहिष्णुता पर भी सदन में बहस करना स्वीकार किया। संविधान पर चर्चा के माध्यम से भी सरकार ने सदन में सकारात्मक माहौल बनाने का प्रयास किया। लेकिन, सत्तापक्ष के सभी प्रयास असफल हुए। कांग्रेस की जिद के कारण संसद ठप रही। कांग्रेस ने न्यायालय में विचाराधीन मामले नेशनल हेराल्ड पर भी संसद में जमकर हंगामा खड़ा किया। अब भी कांग्रेस का रुख ऐसा ही दिख रहा है। इस बार भी संसद सत्र को हंगामें की भेंट चढ़ाने के संकेत कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने दिए हैं। कांग्रेस और वामपंथी दल इस बार रोहित वेमुला और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) प्रकरण में संसद की बलि लेने की तैयारी कर रहे हैं।

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

'असली' देशभक्त बनने के प्रमुख 10 तरीके

 वा मपंथियों की विचार परंपरा के हिसाब से देशभक्ति के दस सूत्र... इन दस तरीकों को नहीं अपनाया तो आप देशभक्त नहीं बल्कि संघी माने जायेंगे।

  1. भारत से कश्मीर को तोडऩे की बात करो और जोर-जोर से नारा बुलंद करो- 'भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह।' 'पाकिस्तान जिन्दाबाद-जिन्दाबाद।' आप इस तरह के नारों का समर्थन करके भी देशभक्त साबित हो सकते हैं। भारत जब युद्ध में घिर जाए तब 1962 का ध्यान करो।
  2. भारतीय संविधान की दुहाई दो, लेकिन उसको मानो मत। मौका मिले तो संविधान की आत्मा ही बदल डालो। आतंकियों के समर्थन में आधी रात को न्यायालय का दरवाजा खटखटाओ। तब भी बात न बने तो बाद में संवैधानिक व्यवस्था न्यायालय का माखौल बनाओ। 
  3. अपने सामने किसी और को बुद्धिजीवी न समझो। विचार-विमर्श करने का ढोंग करो लेकिन जैसे ही कोई सवाल पूछना शुरू करे और ठीक जवाब देते न बने तो फौरन उसे 'संघी' घोषित कर दो। और यह बताने से भी न चूको कि पढ़ाई-लिखाई और देश का ज्ञान देने का ठेका सिर्फ तुमने ले रखा है।
  4. अभिव्यक्ति की आजादी का झंडा बुलंद करो लेकिन जैसे ही बात तस्लीमा नसरीन, सलमान रुशदी जैसे लेखकों की आए, बिना देरी किए उसी झंडे को ओढ़कर सो जाओ। सांस भी मत लेना। जेएनयू में आतंकियों का 'शहीदी दिवस' मनाने की अनुमति मांगो, लेकिन योगाचार्य रामदेव को घुसने मत देना। 
  5. गोएबल्स को खूब गालियां दो, लेकिन उसके सिद्धांत पर व्यवहार करो। जितनी ताकत और बेशर्मी से झूठ बोल सकते हो बोलो। 
  6. लोकतंत्र की प्रक्रिया में शामिल होने का नाटक तो करो लेकिन बार-बार याद करते रहें कि सत्ता बैलेट से नहीं बुलेट से मिलती है। देश में साम्यवादी तानाशाही कायम करनी है। जहाँ भी सरकार में आ जाओ, लाल क्रांति खड़ी कर दो। विरोधी को सहन नहीं करो, गोली से उड़ा दो। 
  7. गांधीजी को बुर्जुआ कहो, अंग्रेजों के लिए उनकी जासूसी करो, लेकिन न्यायालय से निर्दोष साबित संघ को बदनाम करने के लिए उनका इस्तेमाल करना न भूलो। और हाँ, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को गाली देना मत भूलना। शिवाजी जैसे शूरवीरों को पहाड़ी चूहा भी कहना है।
  8. महिलाओं को उपभोग की वस्तु बनाने के लिए पूरे प्रयत्न करो। उन्हें बताओ की यौन स्वच्छंदा ही असली आजादी है। पुरुषों ने उसका उपभोग किया है। अब वह पुरुषों का उपभोग करे। उसका सम्मान करने का प्रपंच करो लेकिन बात जब दुर्गा पूजन की आए तो असुर महिषासुर के साथ खड़े हो जाओ। 
  9. योग का तो नाम भी नहीं लेना। आयुर्वेद तो महा बकवास है। हाँ, मुसीबत में पड़ जाओ तो इनकी शरण लेने में कोई बुराई नहीं। भारतीय ज्ञान-विज्ञान परंपरा को बिना अध्ययन और शोध के खारिज कर दो।  
  10. आखिर में सबसे आसान तरीका। हिन्दुओं को भांति-भांति की गालियां दो। खुलकर दो, जी-भरकर लिखो, यकीन कीजिए आपको बहुत बड़े देशभक्त, बुद्धिजीवी, प्रगतिशील और जितने भी श्रेष्ठ उपमाएं हैं, प्राप्त हो जाएंगी। वेद-पुराण, रामायण-महाभारत पढ़ो न पढ़ो लेकिन इन्हें ब्राह्मणवादी और मिथ्या घोषित करते रहो। सहूलियत के हिसाब से गड़रियों के गीत भी कह सकते हो। भारतीय परंपराओं को गाली देते रहो लेकिन मर जाओ तो विधि-विधान से अंतिम संस्कार करा लेना।
नोट : कोई पांच तरीके अपनाने पर भी आप सेक्युलर देशभक्त बन सकते हैं। लेकिन आखिरी का तरीका जरूरी है। 

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

लाल आतंक पर चुप्पी क्यों है?

 के रल के कन्नूर जिले में बीते सोमवार की रात को वामपंथी गुण्डों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नौजवान कार्यकर्ता की बेरहमी से हत्या कर दी। लेकिन, कहीं से प्रतिरोध की कोई आवाज नहीं आई। असहिष्णुता के नाम पर देश को बदनाम करने का षड्यंत्र रचने वाले बुद्धिजीवी भी न जाने किस खोल में छिपकर बैठ गए हैं? अवार्ड वापसी तो छोडि़ए किसी ने इस घटना की निंदा तक नहीं की है। सबकी संवेदनाएं न जाने कहाँ चली गईं? तिल का ताड़ बनाने वाले मीडिया संस्थान भी इस जघन्य अपराध पर बहस नहीं करा रहे हैं? दिल्ली से दादरी और हैदराबाद दौड़ लगाने वाले संकीर्ण मानसिकता के नेताओं ने भी आँख मूंद ली हैं। उन्हें हिन्दुओं के भगवान हनुमान का मजाक बनाने और जेएनयू के देशद्रोहियों का समर्थन करने से फुरसत नहीं है। यह कैसी निष्पक्षता है? यह कैसी संवेदनशीलता है? यह कैसी असहिष्णुता है? कुछ घटनाओं पर यह उबाल मारने लगती है जबकि वैसी ही कुछ घटनाओं पर ठण्ड पकड़ लेती है। यह दोगलापन नहीं तो क्या है? क्या इस तरह यह देश चल सकता है?

बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

भाजपा को मैहर का आशीर्वाद

 मै हर विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने परचम फहरा दिया है। उपचुनाव में यहां से भाजपा के उम्मीदवार नारायण त्रिपाठी ने कांग्रेस के मनीष पटेल को 28 हजार 281 वोटों से परास्त कर विजय प्राप्त की है। यह जीत भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि, रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव में बड़ी हार ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी थी। राजनीतिक विश्लेषकों ने यह कहना शुरू कर दिया था कि प्रदेश में अब कांग्रेस की वापसी हो रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अनेक राजनीतिक रैलियों और सभाओं के बाद भी रतलाम चुनाव हारने को उनकी लोकप्रियता में कमी आने का संकेत माना जा रहा था। भाजपा रतलाम की हार का ठीक प्रकार से अध्ययन और विश्लेषण भी नहीं कर पाई थी कि कांग्रेस की सीट मानी जा रही मैहर का उपचुनाव सामने आ गया था। नारायण त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाने से भाजपा के अंदरखाने में विरोध की आवाजें उठने लगी थीं। यह कहा जा रहा था कि भाजपा ने गलत उम्मीदवार उतारकर खुद को कमजोर कर लिया है। गौरतलब है कि नारायण त्रिपाठी पूर्व में कांग्रेस के टिकट पर मैहर से चुनाव जीते थे। उनके इस्तीफे के कारण ही यह सीट खाली हुई थी। बहरहाल, मतदान से पूर्व जन अभियान परिषद, सरकार के इंटेलीजेंस और दो निजी संस्थाओं के सर्वे ने मैहर विधानसभा सीट पर कांग्रेस को मजबूत और भाजपा को कमजोर बताया था। इन सर्वे को देखकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नन्द कुमार चौहान भी नर्वस हो गए थे। मैहर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने बहुत संभलकर प्रचार अभियान चलाया था। कांग्रेस के गढ़ में इस जीत से निश्चित ही भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ गया होगा। दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही जीत का स्वाद चखकर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चौहान भी खुश होंगे।

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

राहुल गांधी क्या साबित करना चाहते हैं?

 ज वाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में देश विरोधी नारेबाजी के आरोप में छात्र संगठन के अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी को वामपंथी नेताओं से लेकर अरविन्द केजरीवाल और राहुल गांधी गलत बता रहे हैं। वामपंथी नेताओं के पेट में दर्द क्यों उठा है? यह समझ आता है। भारत को अपमानित करने का आयोजन जिन विद्यार्थियों ने किया है, वे वामपंथी विचारधारा के ही हैं। वैसे, भी वामपंथी विचारक हमेशा ही राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को अभिव्यक्ति की आजादी की ढाल देने का प्रयास करते हैं। देश विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने का वामपंथी इतिहास सबके सामने है। आजादी के आंदोलन में वाम विचारक अंग्रेजों की जी-हुजूरी कर रहे थे। अंग्रेजों के लिए जासूसी तक का काम वामपंथियों ने किया है। महान देशभक्त और देश के नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को गाली देने वाले लोग कौन हैं? नेताजी को तोजो का कुत्ता किसने कहा? वर्ष १९६२ में भारत-चीन युद्ध में वामपंथी किसके साथ खड़े थे? जब सारा देश अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ा रहा था, उनके लिए दुआयें कर रहा था तब वामपंथी चीन के साथ खड़े नजर आए थे। इसलिए उनसे कोई अपेक्षा देश को नहीं है। देश उनके लिए कभी प्राथमिकता में रहा ही नहीं है। यह उनके पतन का कारण भी है।

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

करोड़ों दिलों में जिन्दा है हनुमंथप्पा

 माँ भारती का जाँबाज बेटा हनुमंथप्पा भले ही परलोक चला गया, लेकिन करोड़ों देशभक्त दिलों में वह ज़िंदा है। वैसे भी हनुमंथप्पा जैसे साहसी जवान मरा नहीं करते, वो तो मिसाल बन जाया करते हैं। उनके शौर्य की कहानियां पढ़कर देश के नौनिहाल जवान होते-होते हनुमंथप्पा बन जायेंगे। सियाचीन ग्लेशियर में 6 दिन तक 25 फुट बर्फ ने नीचे दबे रहने के बाद भी जिंदा रहे लांस नायक हनुमंथप्पा हमें हौसले की सीख देने आये थे। संघर्ष का सन्देश देने लौटे थे। देश के लिए जान देने का हुनर सिखाने आये थे। सियाचिन दुनिया का सबसे खतरनाक युद्ध स्थल है। माइनस 45 डिग्री तापमान में भी देश की सीमा की सुरक्षा के लिए हमारे जवान सियाचिन पर तैनात रहकर अदम्य साहस का परिचय देते हैं। कितनी विडम्बना है कि सेना के जवान देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को बनाये रखने के लिए अपनी जान दांव पर लगाते हैं, वहीं तथाकथित प्रगतिशील विचारधारा के लोग सेना के जवानों पर गोलियां दागने वाले आतंकियों का महिमा मंडन करते हैं। हनुमंथप्पा जैसे अनेक सैनिक अपनी जान जोखिम में डालकर हम सब भारतीयों की सुरक्षित नींद को सुनिश्चित करते हैं। बदले में हम उन्हें क्या देते हैं?

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

जेएनयू में जो हुआ, वह देशद्रोह ही है

 ज वाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में कुछ विद्यार्थियों ने आतंकवादी अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की याद में कार्यक्रम किया। दोनों आतंकियों को शहीद का दर्जा दिया गया। अभिव्यक्ति की आज़ादी यहीं नहीं थमी। जेएनयू परिसर में खुलेआम पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाये गए। कितने दुर्भाग्य की बात है कि एक तरफ देश का जवान हनुमंथप्पा अस्पताल में मौत से संघर्ष कर रहा है वहीं दूसरी तरफ इसी देश के कुछ युवा देशद्रोहियों को शहीद का दर्जा दे रहे हैं। यह किस तरह की विचारधारा है? देश को लज्जित करने वाले इस आयोजन के पीछे वामपंथी विचारधारा से पोषित विद्यार्थी हैं। क्या वामपंथ देशद्रोह की सीख देता है? क्या वामपंथ आतंकियों का सम्मान करना सिखाता है? वामपंथियों को एक बार ठीक प्रकार से आत्मचिंतन करना चाहिए। सड़ांध मार रही अपनी विचारधारा को थोड़ा उलट-पलट कर देख लेना चाहिए। खुद को इस देश से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। आखिर न्यायालय से दोषी करार दिए गए अपराधियों को शहीद कहना, किस तरह सही ठहराया जा सकता है? उनको हीरो साबित करके ये विद्यार्थी क्या सन्देश देना चाह रहे हैं? क्या गैरजिम्मेदार अभिव्यक्ति की आज़ादी चाहने वाले बता सकते हैं कि इस तरह के आयोजनों को देशद्रोह क्यों नहीं माना जाना चाहिए?

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

अराजक भीड़ ने 'बेंगलुरु' को किया अपमानित

 बें गलुरु से खबर है कि उग्र भीड़ ने तंजानिया की एक छात्रा के साथ बदसलूकी की है। उसकी पिटाई की है। इतना ही नहीं, भीड़ ने छात्रा के कपड़े भी नोंच लिए। उसे अर्धनग्न अवस्था में सड़क पर दौड़ाया। एक युवक ने जब छात्रा की मदद करने की कोशिश की, उसे अपनी टी-शर्ट पहनने के लिए दी तो भीड़ ने उस युवक को भी जमकर पीटा। बुरी तरह जख्मी लड़की ने भीड़ से बचने के लिए जब वहां से गुजर रही बस में चढऩे की कोशिश की तो यात्रियों ने उसे धकेलकर वापस भीड़ के हवाले कर दिया। यह किस तरह का व्यवहार है। एक लड़की की रक्षा करने की जगह बस यात्रियों ने कायराना व्यवहार किया। उफ! हमारी संवेदनाएं। भीड़ ने छात्रा के तीन दोस्तों को भी बुरी तरह पीटा है। बताते हैं कि पुलिस भी मूक दर्शक की तरह यह वीभत्स घटना को देखती रही। अस्पताल स्टाफ ने भी उन्हें इलाज के लिए भर्ती नहीं किया। बेंगलुरु की पहचान एक हाईटेक और उच्च शिक्षित शहर के नाते है। वहां इस तरह की घटना होना चिंता का विषय है। उग्र भीड़ ने अपने इस कृत्य से समूचे बेंगलुरु को अपमानित किया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बदनामी का कारण यह घटना बन सकती है।

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

आयुर्वेद को प्रोत्साहन

 य ह सुखद बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के प्रति प्रतिबद्धता जताई है। केरल के कोझिकोड में वैश्विक आयुर्वेद महोत्सव को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आयुर्वेद की संभावनाओं का पूरा उपयोग अब तक नहीं हो सका है। जबकि इस भारतीय चिकित्सा पद्धति में अनेक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान की क्षमता है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार आयुर्वेद जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत इस संबंध में चीन जैसे दूसरे देशों के अनुभवों से सीखने का प्रयास करेगा, जिन्होंने अपनी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां बनाईं हैं। हम भली प्रकार जानते हैं कि अब तक भारत में अपनी ही उन्नत चिकित्सा पद्धति की अनदेखी क्यों की गई? अब तक के नीति निर्माताओं को भारतीय ज्ञान-परंपरा पर विश्वास नहीं था। कई अवसर पर आयुर्वेद सहित समस्त भारतीय ज्ञान परंपराओं की जानबूझकर अनदेखी की गई है। पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति के तीव्र विस्तार के कारण भी आयुर्वेद पर ध्यान नहीं दिया गया। परिणाम, आयुर्वेद जैसी अद्भुत चिकित्सा पद्धति का विकास उसके अपने ही देश में अवरुद्ध हो गया।