गुरुवार, 6 अगस्त 2015

भारतीय रेल की प्रतिष्ठा दांव पर, आखिर कब रुकेंगे हादसे

 भा रत का रेल नेटवर्क दुनिया के सबसे बड़े नेटवर्क में से एक है। भारतीय ट्रेनों में हर दिन सवा करोड़ से ज़्यादा लोग सफऱ करते हैं। लिहाजा रेल यात्रियों की सुरक्षा का विषय अधिक गंभीर हो जाता है। लेकिन, देखने में आया है कि हर छह-सात महीने में किसी न किसी बड़े रेल हादसे की खबर देश के किसी न किसी हिस्से से आ ही जाती है। उसके बाद ट्रेन हादसे पर राजनीति शुरू होती है। रेल प्रशासन भी हादसे का दोष एक-दूसरे पर थोपने के प्रयास में लग जाता है। कुछ दिन बाद बात आई-गई हो जाती है। लेकिन, हम हादसे से सबक नहीं सीखते। हम इंतजाम नहीं करते कि इस तरह का ट्रेन हादसा फिर कभी न हो। भारत में भीषण ट्रेन हादसों का लम्बा इतिहास है। कभी दो ट्रेनें आपस में टकरा जाती हैं तो कभी ट्रेन पटरी से उतर जाती है। कई बार चलती ट्रेन में आग भी लग जाती है। भारतीय रेल कब-कहां हादसे का शिकार हो जाए, कहा नहीं जा सकता। हर साल सैकड़ों बेगुनाह मुसाफिर इन हादसों का शिकार बनते हैं। लिहाजा बड़ा सवाल ये है कि आखिर हम ऐसे हादसों से सबक क्यों नहीं लेते?
         मध्यप्रदेश के जिले हरदा के पास मंगलवार-बुधवार की दरमियानी रात भीषण ट्रेन हादसे में जान गंवाने वाले यात्रियों के परिवारों के प्रति हमारी गहरी संवेदनाएं हैं। इस हादसे का कारण बाढ़ को बताया जा रहा है। माचक नदी के पुल पर अधिक पानी आ जाने से कामायनी एक्सप्रेस और जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गईं। गहरी नींद में सो रहे पुरुष, महिलाएं और बच्चे काल के गाल में समा गए। राज्यसभा में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने बयान दिया है। उन्होंने कहा कि बारिश की वजह से हादसा हुआ है, बचाव कार्य जारी है। इस पर कांग्रेस सहित अन्य प्रतिपक्ष ने हंगामा किया। कांग्रेस ने रेलमंत्री के इस्तीफे की मांग की है। कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह नैतिक जिम्मेदारी का सवाल उठा रहे हैं। ट्विटर पर भी ट्रेन हादसा ट्रेंड में है। जनता मान रही है कि सुरेश प्रभु एक अच्छे और ईमानदार मंत्री हैं। इसलिए उन्हें इस्तीफा नहीं देना चाहिए। भले ही इस्तीफा न दिया जाए लेकिन, हादसे की जिम्मेदारी तो तय होनी ही चाहिए। नदी में अचानक पानी बढऩे की बात कहकर जिम्मेदारी से तो नहीं बचा जा सकता। रेलवे प्रशासन को पता होना चाहिए कि किस नदी के किस पुल से, कितनी बारिश होने के बाद गुजरना खतरनाक है। यह चिंता का विषय है कि रेल प्रशासन को ट्रेक के पानी में डूबने की खबर तक नहीं थी। कैसा है हमारा अलर्ट सिस्टम? आखिर हम अब तक ऐसे सिस्टम क्यों नहीं विकसित कर पाए कि रेलवे ट्रेक की कहां, क्या स्थिति है, इसकी जानकारी हादसे से पूर्व पता चल सके। 
        वर्तमान रेलमंत्री की पहचान एक विजनरी मंत्री के रूप में है। सरकार ने जब उन्हें रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी थी तो देश को लगा कि हमारी रेल रफ्तार पकड़ेगी और सुरक्षित भी होगी। उन्होंने कई योजनाएं भी बनाई हैं। लेकिन, वे कब धरातल पर दिखेंगी, यह तो भविष्य ही बताएगा। बुलेट ट्रेन का भी स्वप्र दिखाया जा रहा है। साहब, हादसों से सबक लेते हुए सबसे पहलेे ट्रेन और ट्रेन यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। प्रत्येक यात्री ट्रेन में बेफिक्री से चढ़े। हादसों की रफ्तार को देखकर तो सब यही चाहते हैं कि पहले देश के सभी ट्रेक और टे्रन सुरक्षित हो जाएं। इस तरह के ट्रेन हादसों से हमारे रेल नेटवर्क के विश्वस्तरीय होने पर सवाल खड़े होते हैं। भारतीय रेल की विश्वसनीयता संदिग्ध होती जा रही है। इसलिए रेलमंत्री और रेल प्रशासन हादसे से सबक लें, आगे बढ़ें और यह सुनिश्चित करें कि भविष्य में रेल यात्रा मौत का सफर न बने। 

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