सोमवार, 31 अगस्त 2015

क्या आरोप-प्रत्यारोप से आगे बढ़ेगा प्रचार अभियान?

 प टना के प्रसिद्ध गांधी मैदान से 'महागठबंधन' ने बिहार के स्वाभिमान के नाम पर चुनावी हुंकार भर दी है। बिहार चुनाव प्रचार अभियानों पर पूरे देश की नजर है। ये चुनाव और चुनाव प्रचार दोनों ही महत्वपूर्ण होने वाले हैं। महागठबंधन की स्वाभिमान रैली 'बहुप्रतीक्षित' थी। इसे जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस के गठबंधन के औपचारिक चुनावी अभियान की शुरुआत माना जा रहा था। हालांकि माहौल तो पहले से ही बनने लगा था। स्वाभिमान रैली के मंच से गठबंधन के तीनों प्रमुख दलों के नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी को घेरने का प्रयास किया। कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने सीधे तौर मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने नरेन्द्र मोदी की नीतियों और नीयत पर सवाल खड़े किए। श्रीमती गांधी ने कहा कि मोदी की नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था खराब होती जा रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि चुनावी प्रचार के लिए प्रधानमंत्री बिहार को बीमारू राज्य कहकर उसका अपमान करते हैं। मोदी को बिहार को नीचा दिखाने में आनंद आता है। नीतीश कुमार ने भी मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि केन्द्र सरकार को 14 महीने बाद बिहार की याद क्यों आई है? बिहार में चुनाव नहीं होते तो मोदीजी बिहार और बिहार की जनता को याद ही नहीं करते। बहरहाल, चुनावी महागठबंधन पिछले कई दिन से रैली की जोरदार तैयारियां कर रहा था। मोदी की परिवर्तन रैली सहित अन्य कार्यक्रमों में उमड़े जनसैलाब से अधिक भीड़ पटना के गांधी मैदान में जमा करने का दबाव भी तीनों पार्टियों पर था। रैली के सफल आयोजन से भारतीय जनता पार्टी पर मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने के लिए नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने काफी तैयारी की हैं और कर रहे हैं।

शनिवार, 29 अगस्त 2015

मूल्य खोकर क्या पाया हमने?

 स नसनीखेज शीना बोरा हत्याकांड ने भारतीय समाज को सोचने का अवसर दिया है कि वह किस तरफ आगे बढ़ रहा है। रिश्तों में खोखलापन, झूठ की बुनियाद पर टिके रिश्ते, विवाह को खेल बना देना, रिश्तों में जिम्मेदारी से ऊपर हावी व्यक्तिगत सोच ने हमें कहां लाकर पटक दिया है? क्या यह आधुनिकता है? आधुनिक होने के लिए क्या भारतीय मूल्यों को छोडऩा जरूरी है? अपने चिर-पुरातन और जीवन को संयमित करने वाले संस्कारों के साथ हम आधुनिक नहीं हो सकते? एक बड़ा सवाल है आखिर तथाकथित प्रगतिशीलता की दौड़ में अपने मूल्यों को खोकर हमने क्या पाया है? चमकती दुनिया में रहने वाली इंद्राणी मुखर्जी की कहानी आज बहुत से परिवारों का यथार्थ है। जहां हर कोई अपने कर्तव्य-जिम्मेदारी निभाने में असफल हैं। रिश्ते दिखावटी अधिक हैं। उनमें मिठास नहीं है, संवेदनाएं नहीं हैं, जीवतंता नहीं है। चमकती दुनिया के पीछे कितना गहन अंधकार पसरा रहता है, इसके कई उदाहरण शीना बोरा हत्याकांड प्रकरण से उजागर हो रहे हैं। एक घर में, एक छत के नीचे रहते हुए एक-दूसरे से अजनबी हैं। एक-दूसरे के जीवन की दिशा का पता नहीं है और जब पता चलता है तब रिश्तों को तार-तार कर देने वाला विस्फोट होता है। कितने आश्चर्य और चिंता की बात है कि समाज तो क्या घर में ही किसी को पता नहीं होता है कि शीना बोरा और इंद्राणी मुखर्जी का रिश्ता क्या है?

शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

आरक्षण की आग

 आ रक्षण की मांग को लेकर गुजरात में जो हो रहा है, वह देशहित में नहीं है। आरक्षण की मांग के लिए सरकारी और निजी सम्पत्ति को नष्ट करना, कहाँ उचित है? आगजनी और हिंसक गतिविधियों से शेष समाज के समक्ष भय का वातावरण बनाना, कहाँ ठीक है? भारतीय समाज के लिए यह खतरनाक संकेत हैं। आरक्षण के विषय पर पहले से ही हिन्दू समाज बंटा हुआ है। आरक्षण के लिए इस तरह के हथकंडे देखकर अन्य जातियां भी उत्तेजित हो रही हैं। ईश्वन न करे कि हिन्दू समाज जातियां तोडऩे की जगह फिर से जातियों में बंट जाए। आरक्षण की मांग या विरोध में, कहीं ये जातियां एक-दूसरे के सामने खड़ी न हो जाएं? लोकतंत्र में अपनी बात कहने के और भी तरीके हैं। सरकार से अपनी मांगें मनवाने के और भी रास्ते हैं। आंदोलन करने की अपनी एक मर्यादा है। हिंसा का रास्ता अपनाया तो आंदोलन की पवित्रता बची नहीं रहती। गुजरात की भूमि से निकले महापुरुष महात्मा गांधी ने स्वयं कहा है कि पवित्र साध्य की प्राप्ति के लिए साधन और मार्ग भी उतने ही पवित्र होने चाहिए। गांधीजी ने तो अहिंसक आंदोलनों से दमनकारी ब्रिटिश शासन को हिन्दुस्थान से इग्लैंड तक हिला दिया था। गुजरात का होकर भी पटेल समुदाय गांधीजी से आंदोलन की सीख नहीं ले सका।

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

समान नागरिक संहिता से रुकेगा जनसंख्या असंतुलन

 भा रत सरकार ने जनगणना-2011 के धर्म आधारित आंकड़ों का लेखा-जोखा जारी कर दिया है। आंकड़ों के मुताबिक देश की आबादी में भारत के मूल धर्मावलम्बी हिंदुओं की जनसंख्या लगभग 96.63 करोड़ है यानी कुल आबादी का 79.8 प्रतिशत। ऐसा पहली बार हुआ है कि देश की जनसंख्या में हिंदुओं की भागीदारी 80 प्रतिशत से नीचे पहुंची हो। जबकि मुस्लिम आबादी 24.6 प्रतिशत की वृद्धि दर से बढ़ रही है। मुसलमानों की जनसंख्या 14.2 प्रतिशत हो गई है। यानी देश में करीब 17.22 करोड़ मुसलमान रह रहे हैं। जनगणना-2001 के आंकड़ों में मुसलमानों की आबादी 13.4 प्रतिशत थी, जिसमें 0.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। मुस्लिम जनसंख्या का वास्तविक आंकड़ा इससे अधिक हो सकता है। क्योंकि, बांग्लादेश से घुसपैठ करके भारत में आकर बस गए मुस्लिम आमतौर पर वापस बांग्लादेश भेजे जाने के डर से अपनी धार्मिक पहचान छिपाकर खुद को हिन्दू बिहारी या हिन्दू बंगाली बताते हैं। धर्म की जानकारी नहीं देने वालों की भी संख्या करीब 29 लाख है। यह आंकड़ा भी इस ओर संकेत देता है कि वास्तविक मुस्लिम जनसंख्या सरकारी रिकॉर्ड में दिखाए गए आंकड़ों से अधिक हो सकती है। तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवी जनसंख्या के आंकड़ों पर शुतुरमुर्ग की तरह व्यवहार कर सकते हैं। तेजी से हो रहा जनसंख्या असंतुलन उन्हें दिखाई न दे या हिन्दुओं की घटती और मुसलमानों की बढ़ती आबादी से उन्हें किसी प्रकार की समस्या न हो। लेकिन, भारत का बहुसंख्यक समाज इन आंकड़ों से जरूर चिंतित है।

बुधवार, 26 अगस्त 2015

आरक्षण : इधर कुंआ, उधर खाई

 पा टीदार समुदाय को आरक्षण देने की मांग को लेकर गुजरात में दो माह से आंदोलन चल रहा है। आंदोलन की कमान 22 साल के नवयुवक हार्दिक पटेल के हाथ में है। अहमदाबाद में मंगलवार को विशाल रैली का आयोजन किया गया। आरक्षण की मांग के लिए रैली में भारी संख्या में भीड़ जमा हुई। हार्दिक पटेल ने जोरशोर से आरक्षण की मांग उठाते हुए फिल्मी स्टाइल में नारे भी दिए हैं। 'जो पाटीदार की सुनेगा, वही पाटीदार पर राज करेगा।' 'हक से दोगे तो ठीक है वरना छीन लेंगे।' बहरहाल, पाटीदार आंदोलन राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा है। हालांकि गुजरात सरकार ने साफ कर दिया है कि आरक्षण की मांग स्वीकार नहीं। दरअसल, आरक्षण का मसला बहुत संवेदनशील है। आरक्षण को लागू करना और नहीं मानना या खत्म करना किसी भी सरकार के लिए राजनीतिक तौर पर आसान काम नहीं है। आरक्षण की मांग स्वीकार की तो बहुसंख्यक सामान्य वर्ग सरकार से नाराज हो सकता है। यदि मांग नहीं मांगी गई तो संबंधित समाज सरकार के खिलाफ हो जाएगा। यानी सरकार चलाने वाले राजनीतिक दल के लिए 'इधर कुंआ, उधर खाई' की स्थिति हो जाती है।

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

सेना का मनोबल बढ़ाए सरकार

 भा रतीय सेना दुनिया की सबसे जांबाज और बड़ी सेनाओं में शुमार है। हमारे योद्धा प्रतिकूल परिस्थितियों में अपनी जान लड़ाकर मोर्चा संभाले रहते हैं। शियाचीन की बर्फीली चोटियों पर खून जमा देने वाली ठण्ड हो या फिर रेगिस्तान की खून उबाल देने वाली गर्मी, जवान अपने कर्तव्य से नहीं डिगते। ऐसी सेना का मनोबल बढ़ाना प्रत्येक सरकार की जिम्मेदारी है। सैनिकों के लिए उनके निजी हित और परिवार कभी प्राथमिकता की सूची में शीर्ष पर नहीं रहे हैं, उनके लिए तो राष्ट्र सबसे पहले रहा है। लेकिन, अब तक की सरकारों ने निष्ठावान जवानों और उनके परिवारों की बेहतरी के लिए कभी उतना ध्यान नहीं दिया, जितना देना चाहिए था। वन रैंक, वन पेंशन की सिफारिश को लागू करके भाजपानीत केन्द्र सरकार यह श्रेय ले सकती है। केन्द्र सरकार को यह योजना जल्द लागू करना चाहिए।

सोमवार, 24 अगस्त 2015

डरपोक पाकिस्तान आतंकवाद से नहीं लड़ सकता

 रा ष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की बातचीत से पाकिस्तान ने कदम खींच लिए हैं। बैठक के चंद घंटे पहले पाकिस्तान ने साफतौर पर इनकार कर दिया। संभवत: वह भारत की तैयारियों को देखकर डर गया। यह सामान्य-सी बात है कि डरा हुआ देश आतंकवाद से नहीं लड़ सकता। पाकिस्तान की इच्छाशक्ति ही नहीं है आतंकवाद से लड़ाई करना। वह तो आतंकवाद को पनाह देने वाला देश है। आतंकियों का पालन-पाषण करने वाला देश आखिर आतंकवाद से क्यों लड़ेगा? पाकिस्तान शुरू से ही आतंकवाद के मसले पर भारत से बात करना नहीं चाह रहा था। सीमापार से लगातार गोलाबारी और इस गोलाबारी की आड़ में भारत में आतंकियों की घुसपैठ कराने की उसकी हरकतें बताती हैं कि वह चाह रहा था कि भारत भड़क जाए और एनएसए स्तर की बातचीत रद्द कर दे। इससे भी बात नहीं बनी तो मीटिंग से ठीक पहले हुर्रियत के भूत से भारत को उकसाने की कोशिश करने लगा। उसे मालूम है कि भारत को यह कतई मंजूर नहीं होगा कि पाकिस्तान अलगाववादी संगठन हुर्रियत के नेताओं से कोई बातचीत करे।

शनिवार, 22 अगस्त 2015

सोच-विचार कर करें शिक्षा में बदलाव

 भा रत सरकार एक बार फिर स्कूली शिक्षा प्रणाली में बदलाव करने का विचार कर रही है। आठवीं कक्षा तक विद्यार्थियों को फेल नहीं करने के नियम को सरकार बदलने जा रही है। शिक्षा से संबंधित केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड में बनी सहमति के बाद राज्य सरकारों से रजामंदी मांगी गई है। मध्यप्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री पारस जैन ने यह मामला उठाया था कि जब से पांचवी और आठवीं की बोर्ड परीक्षा समाप्त की गई है तब से शिक्षा का स्तर गिर गया है। विद्यार्थियों को पता है कि वे फेल नहीं होंगे, इसलिए पढ़ाई पर उनका ध्यान नहीं रहता। प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर बच्चों की नींव कमजोर होने से उच्च शिक्षा में भी दिक्कतें आती हैं। हमें याद है कि आठवीं तक बोर्ड की परीक्षा खत्म करने के पीछे तर्क दिया गया था कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता सुधरेगी, बच्चों के दिमाग पर परीक्षा का भूत सवार नहीं रहेगा तो रचनात्मकता बढ़ेगी। बच्चों के दिमाग से तनाव हटेगा। इन महत्वपूर्ण तथ्यों के प्रकाश में आठवीं तक किसी बच्चे को फेल नहीं करने का निर्णय बिना तैयारी किए ही ले लिया था।

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

वार्ता जरूर करे भारत

 पा किस्तान अपना असली रंग दिखा रहा है। पाकिस्तान की ताजा हरकतें बताती हैं कि वह नई शुरुआत करना नहीं चाहता। पाकिस्तान के चरित्र में ही गड़बड़ी है। भारत जब भी पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाता है, पाकिस्तान आंस्तीन में छिपे सांपों को छोड़ देता है। पाकिस्तान ने 23-24 अगस्त को दिल्ली में होने वाली राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की बैठक से पहले अपने सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज के साथ डिनर के लिए हुर्रियत नेताओं को आमंत्रित किया है। इसे पाकिस्तान की सोची-समझी चाल माना जा रहा था। क्योंकि, पिछले साल भी विदेश सचिव स्तर की वार्ता से पहले दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने हुर्रियत नेताओं से मुलाकात की थी। जिससे नाराज होकर भारत ने मीटिंग ही रद्द कर दी थी। पाकिस्तान लगातार भारत को उकसाने की कोशिश कर रहा है। वह चाहता है कि भारत सरकार फिर से वार्ता रद्द कर दे ताकि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ढोल पीट सके कि भारत बातचीत करने के पक्ष में नहीं है। भारत बार-बार वार्ता रद्द कर देता है। पाकिस्तानी सरकार के कई महत्वपूर्ण लोग रूस के उफा में तय हुई भारत-पाक की एनएसए लेवल की मीटिंग से नाखुश हैं। उन्हें मालूम है कि भारत इस तरह की बैठक में पाकिस्तान से बढ़त ले लेता है। पाकिस्तान की जमीं पर पल रहे आतंकवाद की बात बैठक में होगी तो उसकी साख दुनिया में और खराब होगी।

गुरुवार, 20 अगस्त 2015

इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय का पूरा देश करे पालन

 शि क्षा व्यवस्था को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है। लगातार अनदेखी से दुर्दशा के शिकार हुए सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था को ठीक करने का यह प्रभावी रास्ता हो सकता है। हाईकोर्ट के फैसले को महज उत्तरप्रदेश के संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि स्कूली शिक्षा की हालत तो पूरे देश में लगभग एकसमान है। अच्छा होगा यदि सभी राज्य स्वत: पहल करके अपने यहां भी इस फैसले को लागू करें। हाईकोर्ट ने कहा है कि जनप्रतिनिधि, नौकरशाह और न्यायाधीश अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाएं। हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि जिन नेताओं, अधिकारियों और न्यायाधीशों के बच्चे सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ें, उनके वेतन से स्कूल की फीस के बराबर राशि काटकर सरकारी स्कूलों के कल्याण पर खर्च की जाए। प्राथमिक स्कूलों की दयनीय हालत के संदर्भ में दायर की गई जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। फैसला सुनाते वक्त न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि खराब हालत होने के बाद भी करीब 90 फीसदी बच्चे इन्हीं सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, ऐसे में इनकी दशा सुधारना बहुत जरूरी है।

बुधवार, 19 अगस्त 2015

यूएई की यात्रा मील का पत्थर

 भा रतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो दिन की यात्रा के दौरान संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ संबंधों का जो निवेश किया है, वह किसी भी आर्थिक निवेश से अधिक महत्वपूर्ण है। दो दिन में हुए महत्वपूर्ण घटनाक्रमों और संकेतों से हमें यह समझना होगा कि प्रधानमंत्री की यूएई की यात्रा निकट भविष्य में भारत के लिए मील का पत्थर साबित होगी। यूएई के साथ जो समझौते हुए हैं उनके कारण न केवल पश्चिम एशिया में भारत का कद बढ़ेगा बल्कि समूचे विश्व में भी भारत की छवि और सशक्त होगी। यूएई ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन किया है। भारत के उस प्रस्ताव को भी समर्थन दिया है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र में समग्र अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद संधि की बात की गई है। आतंकवाद पर भी दोनों देशों का मन एक है। आतंकवाद में अच्छे-बुरे का भेद नहीं। प्रत्येक आतंकवाद मानवता के लिए खतरा है, कलंक है। धर्म की आड़ लेकर लोगों का खून बहाने के कृत्य को दोनों देशों ने गलत ठहराया है। अपने साक्षा बयान में भारत और यूएई ने आतंकवाद और सभी प्रकार की कट्टरता के खिलाफ मिलकर लडऩे का फैसला किया है। यूएई की धरती से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान को भी इशारों ही इशारों में सुधरने की चेतावनी दे दी है। अंतरराष्ट्रीय अपराधी दाऊद इब्राहिम के मामले में भी भारत को बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। यूएई सरकार ने भरोसा दिया है कि जांच के बाद वह दाऊद की संपत्तियों को सीज करने की कार्रवाई करेगी। यदि यह हो गया तो दाऊद इब्राहिम, उसके जैसे अन्य आतंकवादियों और पाकिस्तान के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी।

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

घटनाओं को सांप्रदायिक चश्में से देखना बंद करना होगा

 भा रत के राजनीतिक दलों और उनके नेताओं में सांप्रदायिक सोच और दृष्टि गहरे तक पैठ कर गई है। इसके पीछे स्पष्ट तौर पर वोट बैंक एकमात्र कारण है। भारत में धर्म संवेदनशील मसला है। हमने धर्म को उसकी मूल प्रकृति से हटाकर पूजा-पाठ, मत-संप्रदाय और पंथ तक सीमित कर दिया है। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं है कि तुष्टीकरण, वोट बैंक और सांप्रदायिक राजनीतिक नजरिए के कारण धर्म छुईमुई का पौधा हो गया है। आपत्तिजनक स्थिति यह है कि हमारे नेता प्रत्येक घटना में धर्म ढूंढ़ लेते हैं। बात का बतंगड़ बनाते हैं। राजनीतिक चूल्हे पर एक संकीर्ण ढेकची में धर्म को उबालते हैं। विविधता के बावजूद एकसूत्र में बंधे भारतीय समाज को विभाजित कर पॉकेट्स में बांट देते हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 34 साल बाद संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा पर गए हैं। वे वहां दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी शेख जायेद मस्जिद में भी गए। विभिन्न राजनीतिक दलों की सांप्रदायिक सोच इस मौके पर भी जाहिर हो गई। भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी बताने वाले ही प्रत्येक घटना में धर्म को घसीटकर ले आते हैं, ऐसा महसूस होने लगा है। सवाल खड़ा होता है कि सांप्रदायिक कौन है, भाजपा या अन्य? मोदी ने टोपी नहीं पहनी तो हंगामा। मोदी इफ्तार पार्टी में नहीं गए तो मुसलमानों के विरोधी। मोदी ने जो साफा बांधा था उसकी हरा रंग उसमें ऊपर नहीं पूंछ में था। अब मोदी मस्जिद जा रहे हैं तब भी हंगामा। आखिर हम प्रत्येक घटना को सांप्रदायिक चश्मे से देखना कब बंद करेंगे?

सोमवार, 17 अगस्त 2015

सुधारात्मक और सकारात्मक परिणाम चाहिए

 स्व तंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का राष्ट्र के नाम संदेश और 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण हमें सुधारात्मक और सकारात्मक दिशा में आगे बढऩे के लिए प्रेरित करता है। मानसून सत्र के दौरान संसद के भीतर राजनीतिक दलों के बीच आपसी कटुता और भयंकर टकराव को देखकर राष्ट्रपति ने चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि लोकतंत्र की संस्थाएं दबाव में हैं तो समय आ गया है कि जनता और उसके दल गंभीर चिंतन करें। सुधारात्मक उपाय भीतर से आने चाहिए। राष्ट्र के नाम अपने संदेश में उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि अपने राजनीतिक उद्देश्यों को साधने के लिए संसद को ठप करना ठीक नहीं। उनका भाषण सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष दोनों को बार-बार सुनना और गुनना चाहिए। लोकतंत्र के सम्मान को बचाए रखना सबसे महत्वपूर्ण है। यह हमारे लिए अमूल्य धरोहर है। अपने व्यवहार से हमें लोकतंत्र को और अधिक मजबूत करना है।

शनिवार, 15 अगस्त 2015

कभी खुद से पूछा है- क्या हैं आजादी के मायने?

 आ ज हम स्वाधीनता के 68 वर्ष पूरे कर रहे हैं। किसी से छिपा नहीं है कि स्वाधीनता के संघर्ष में हमने क्या और कितना कुछ खोया है। स्वतंत्रता संग्राम के महायज्ञ में अनेक हुतात्माओं ने अपना जीवन होम कर दिया। ब्रिटिश शासन के कालखण्ड का एक-एक पन्ना हम पलटें तब समझ आएगा स्वाधीनता का वास्तविक मूल्य। आजादी के असली मायने। बीते 68 वर्षों से हम निरंतर अपनी आजादी को खोते जा रहे हैं। क्षण-क्षण जिम्मेदारी का भाव छूट रहा है। मानसिक गुलामी की ओर बढऩे का प्रश्न हमारे सामने खड़ा कर दिया जाता है। ब्रिटिश दासता की जंजीरें काटकर देश को स्वाधीन दिलाने के लिए खून का एक-एक कतरा बहा दिया था, स्वतंत्रता सेनानियों ने। जरा सोचिए, उसी आजादी को समृद्ध करने के लिए हमने 68 वर्षों में क्या किया? यह सवाल जब हम स्वयं से पूछते हैं तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि हमारे जीवन की दिशा क्या है? हम इस समाज और देश से सिर्फ प्राप्त करना चाहते हैं। देने का भाव कहां गया? हम तो किसी जमाने में दाता थे। मांगने वाले कब बन गए? आजादी के नाम पर हमें सिर्फ सहूलियतें ही क्यों चाहिए? अधिकार हमें याद रहते हैं, कर्तव्य कहां ताक पर रख दिए हैं?

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

दिखा स्वार्थ और घमंड, दरकने लगा 'सेक्युलर गठबंधन'

 बि हार विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार की अगुवाई में तथाकथित 'सेक्युलर गठबंधन' बनाया गया है। एक-दूसरे के खिलाफ आग उगलने वाले लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार भी एक मंच पर आ गए। कांग्रेस ने दोनों को एक साथ लाने के लिए विशेष प्रयास किए। 'भानुमति के कुनबे' में शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी शामिल हो गई थी। गठबंधन में शामिल पार्टियों ने आपस की कटुता भुलाकर भाजपा को रोकने के लिए राजनीतिक मंचों से गहरी एकजुटता का प्रदर्शन किया। लेकिन, सब जानते थे कि 'भांति-भांति' की ये पार्टियां अधिक दिन साथ रहने वाली नहीं हैं। सबके हित अलग-अलग हैं। राजनीतिक एजेंडे अलग-अलग हैं। राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए सबके चूल्हे भी अलग-अलग हैं। व्यक्तिगत स्वार्थ भी हावी हैं। बहरहाल, भाजपा के खिलाफ बुलंद हुए गठबंधन में सीटों के बंटवारे के साथ ही दरारें दिखने लगी हैं।

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

हद है हंगामे की

 लो कतंत्र की आत्मा है संसद। कांग्रेस की जिद आत्मा को तकलीफ पहुंचा रही है। मानसून सत्र के पहले दिन से अब तक कांग्रेस की अगुवाई में जारी गतिरोध से 'हंगामे की हद' भी टूटने लग गई हैं। हालांकि बुधवार को कांग्रेस की मांग पर सभापति ने स्थगन प्रस्ताव (ललित मोदी प्रकरण के संबंध में) पर चर्चा की अनुमति दे दी। लेकिन, स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भी जमकर हंगामा किया गया। प्रश्नकाल की कार्यवाही तो प्रतिपक्ष ने चलने ही नहीं दी। बहरहाल, सीमा लांघते हंगामे पर कांग्रेस के साथ खड़ी दूसरी पार्टियों ने भी एतराज जताना शुरू कर दिया है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने कहा है कि कांग्रेस संसद नहीं चलने देना चाहती। संसद में अब हंगामा बेमतलब है। काम भी होना चाहिए। कांग्रेस का रुख अनुचित है। अब तक वेल में जाकर तख्तियां दिखा रहे कांग्रेसी सांसदों ने मंगलवार को संसद की मर्यादा ही तार-तार कर दी। उन्होंने उप सभापति पर कागज के टुकड़े उछाल दिए। आसंदी का अपमान।

बुधवार, 12 अगस्त 2015

हादसों से कब सीखेंगे

 दे वघर में हुए हादसे ने फिर से कुछ सवाल जिंदा कर दिया हैं। आखिर सरकारें हादसों से कब सीखेंगी? भीड़ का प्रबंधन करने में सरकारें क्यों असफल हो जाती हैं? झारखंड सरकार को पहले से पता था कि देवघर स्थित शिव मंदिर प्रसिद्ध है। यह बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक है। सावन के सोमवारों के अवसर पर यहां झारखंड ही नहीं वरन आसपास के राज्यों से भी श्रद्धालु आते हैं। वर्ष 2012 में भी मंदिर परिसर में भगदड़ मच गई थी, तब नौ लोगों की जान चली गई थी। इसी सावन में भी शुरुआती दिनों छोटा-सा हादसा यहां हुआ था। इसके बाद भी सरकार चेती नहीं। प्रशासन ने भीड़ से निपटने के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई। प्रसिद्ध मंदिरों या तीर्थस्थलों पर हादसे का कारण यह कतई नहीं होना चाहिए कि अचानक से भारी संख्या में श्रद्धालु आ गए। देवघर में भी भारी संख्या में श्रद्धालु जुटेंगे, इसका अनुमान तो सरकार को पहले से ही था और नहीं था तो होना चाहिए था। देवघर में हुए हादसे का सबसे बड़ा कारण है कि हमने और हमारी सरकारों ने पूर्व में हुए हादसों से अभी तक कुछ नहीं सीखा है। जनसैलाब के प्रबंधन के उपाय नहीं सीखे।

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

आक्रामक होइए लेकिन शालीनता का ध्यान रखें

 बि हार चुनाव गति पकड़ता जा रहा है। बिहार चुनाव के महत्व को देखते हुए चुनावी प्रचार में आक्रामकता भी बढ़ती जा रही है। बुलंद नारे और जुमले उछाले जा रहे हैं। प्रत्येक पार्टी अपनी पूरी ताकत लगा रही है। कोई पार्टी कुछ भी ढील छोडऩे के मूड में नहीं है। सबकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। सब जानते हैं कि बिहार चुनाव के नतीजे भारतीय राजनीति की दशा और दिशा पर व्यापक प्रभाव डालेंगे। आगामी वर्षों में होने वाले उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्यों के चुनावों तक बिहार के नतीजों का असर जाएगा। इसलिए चुनाव प्रचार में कोई भी दल पिछडऩा नहीं चाहता। जुबानी ताकत से लेकर जनबल-धनबल, सबका जमकर उपयोग होने वाला है। बिहार सहित समूचे देश की निगाहें इस चुनाव पर हैं।

सोमवार, 10 अगस्त 2015

स्वच्छता को आदत बनाना पड़ेगा

 के न्द्र सरकार ने देश के स्वच्छ शहरों की सूची जारी की है। इस सूची में दक्षिण भारत के शहरों ने बाजी मारी है। दक्षिण भारत के 39 शहर शीर्ष 100 शहरों में स्थान बनाने में कामयाब रहे हैं। जबकि उत्तर भारत के महज 12 शहर ही टॉप 100 में आ सके हैं। शीर्ष पर कर्नाटक का मैसूर है। जबकि मध्यप्रदेश का शहर दमोह सूची में सबसे आखिरी स्थान पर रहा। सूची में भिण्ड 475, नीमच 467, ग्वालियर 400 और उज्जैन 355वें पायदान पर रहा। मध्यप्रदेश के लिए सोचने की बात है कि उसकी राजधानी (भोपाल) भी स्वच्छता के मामले में 106वें स्थान पर है। देश के एक लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की स्वच्छता के मामले में स्थिति क्या है, यह जानने के लिए सरकार ने 31 राज्यों के 476 शहरों का सर्वे कराया था। सर्वे में सरकार ने खुले में शौच, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट, पानी की गुणवत्ता और पानी से होने वाली बीमारियों से मौतों के आंकड़े का अध्ययन किया।

शनिवार, 8 अगस्त 2015

ऑफर्स के फेर में बेफिजूल खरीदारी

 ऑ नलाइन शॉपिंग की ओर भारतीयों का रुझान तेजी से बढ़ रहा है। इसके पीछे एक बड़ा कारण ऑनलाइन कंपनियों की ओर से गाहे-बगाहे दिए जा रहे बम्पर ऑफर्स हैं। कैश ऑन डिलेवरी और मासिक किश्त पर खरीदारी की सुविधा भी ई-कॉमर्स की ओर भारतीयों को आकर्षित कर रही हैं। तगड़ी छूट का विज्ञापन भी ये कंपनियां जोर-शोर से करती हैं। विज्ञापन और कंपनियों के भारी डिस्काउंट ऑफर्स के मोहजाल में फंसकर दुकान पर तोल-मोल करके खरीदारी करने वाली महिलाएं भी घर बैठे साड़ी, ज्वैलरी, टेलीविजन, मोबाइल और अपनी किचन का सामान भी ऑनलाइन खरीद रही हैं। ऑनलाइन शॉपिंग का खुमार पुरुषों पर महिलाओं से अधिक है। अलग-अलग सर्वेक्षणों में यह बात सामने आ रही है कि कुछ समय पहले तक मोबाइल और कम्प्यूटर संबंधी उपकरण सहित इलेक्ट्रोनिक सामान ही सबसे अधिक खरीदा जा रहा था लेकिन अब कपड़े, क्रॉकरी, साज-सज्जा, किराने का सामान भी ऑनलाइन खरीदा जाने लगा है।

शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

और कितने सबूत चाहिए, आतंकवाद के साथ है पाकिस्तान

 भा रत के पास फिर एक मौका आया है यह साबित करने के लिए कि पाकिस्तान आतंकवाद की फैक्ट्री है। पाकिस्तान में चल रहे हैं आतंकी कैम्प। पाकिस्तान की नीयत ठीक नहीं है। उसके डीएनए में ही खराबी है। वह लगातार भारत के खिलाफ षड्यंत्र करता है। दोहरा चरित्र है पाकिस्तान का। एक तरफ भारत के साथ बातचीत को ढोंग करता है तो दूसरी तरफ आस्तीन में पाले सांपों को भारत में छोड़ देता है। जब ये सांप जिन्दा पकड़े जाते हैं तो पाकिस्तान की पोल खोल देते हैं। भारत के साहसी नागरिकों ने पाकिस्तान से भेजे गए आतंकी मोहम्मद नावेद याकूब को पकड़ लिया है। नावेद ने कबूल किया है कि वह पाकिस्तान के फैसलाबाद का रहने वाला है। हिन्दुओं की हत्या करने में उसे मजा आता है। अमरनाथ यात्रियों की हत्या करने के लिए वह आया था। बड़ी हैरान करने वाली बात है कि हिन्दुओं ने किसी का क्या बिगाड़ा है? उनको क्यों टारगेट किया जा रहा है? हिन्दू न तो पाकिस्तान में सुरक्षित हैं और न ही हिन्दुस्तान में। आतंकियों के समर्थक जान लें कि नावेद जैसे आतंकियों के इरादे कितने जहरीले हैं। आतंकियों की फांसी पर बेमतलब स्यापा न करें।

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

दीनदयाल जी की याद दिलाती एक किताब

 भा रतीय जनता पार्टी के प्रति समाज में जो कुछ भी आदर का भाव है और अन्य राजनीतिक दलों से भाजपा जिस तरह अलग दिखती है, उसके पीछे महामानव पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तपस्या है। दीनदयालजी के व्यक्तित्व, चिंतन, त्याग और तप का ही प्रतिफल है कि आज भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर राजनीति के शीर्ष पर स्थापित हो सकी है। राज्यों की सरकारों से होते हुए केन्द्र की सत्ता में भी मजबूती के साथ भाजपा पहुंच गई है। राजनीतिक पंडित हमेशा संभावना व्यक्त करते हैं कि यदि दीनदयालजी की हत्या नहीं की गई होती तो आज भारतीय राजनीति का चरित्र कुछ और होता। दीनदयालजी श्रेष्ठ लेखक, पत्रकार, विचारक, प्रभावी वक्ता और प्रखर राष्ट्र भक्त थे। सादा जीवन और उच्च विचार के वे सच्चे प्रतीक थे। उन्होंने शुचिता की राजनीति के कई प्रतिमान स्थापित किए थे। उनकी प्रतिभा देखकर ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि यदि मेरे पास एक और दीनदयाल उपाध्याय होता तो मैं भारतीय राजनीति का चरित्र ही बदल देता।

भारतीय रेल की प्रतिष्ठा दांव पर, आखिर कब रुकेंगे हादसे

 भा रत का रेल नेटवर्क दुनिया के सबसे बड़े नेटवर्क में से एक है। भारतीय ट्रेनों में हर दिन सवा करोड़ से ज़्यादा लोग सफऱ करते हैं। लिहाजा रेल यात्रियों की सुरक्षा का विषय अधिक गंभीर हो जाता है। लेकिन, देखने में आया है कि हर छह-सात महीने में किसी न किसी बड़े रेल हादसे की खबर देश के किसी न किसी हिस्से से आ ही जाती है। उसके बाद ट्रेन हादसे पर राजनीति शुरू होती है। रेल प्रशासन भी हादसे का दोष एक-दूसरे पर थोपने के प्रयास में लग जाता है। कुछ दिन बाद बात आई-गई हो जाती है। लेकिन, हम हादसे से सबक नहीं सीखते। हम इंतजाम नहीं करते कि इस तरह का ट्रेन हादसा फिर कभी न हो। भारत में भीषण ट्रेन हादसों का लम्बा इतिहास है। कभी दो ट्रेनें आपस में टकरा जाती हैं तो कभी ट्रेन पटरी से उतर जाती है। कई बार चलती ट्रेन में आग भी लग जाती है। भारतीय रेल कब-कहां हादसे का शिकार हो जाए, कहा नहीं जा सकता। हर साल सैकड़ों बेगुनाह मुसाफिर इन हादसों का शिकार बनते हैं। लिहाजा बड़ा सवाल ये है कि आखिर हम ऐसे हादसों से सबक क्यों नहीं लेते?

बुधवार, 5 अगस्त 2015

नगालैण्ड के अच्छे दिनों की आहत

 व र्षों से उग्रवाद के कारण हिंसा से परेशान नगालैण्ड और वहां के रहवासियों के लिए संभवत: अच्छे दिन आ गए हैं। केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम-आईएम (एनएससीएन-आईएम) के साथ शांति समझौता कर लिया है। नगा गुट की ओर से समझौते पर एनएससीएन-आईएम के महासचिव थुइंगालेंग मुइवा ने हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के लिए लम्बे समय से प्रयास चल रहा था। लेकिन, सरकार और एनएससीएन के बीच अनुकूल परिस्थितियां नहीं बनने के कारण यह अब तक अटका हुआ था। सरकार के प्रति भरोसा कायम होने के बाद ही उग्रवादी संगठन ने शांति की राह पर बढऩे का फैसला किया है। इस समझौते के साथ ही देश के सबसे पुराने और पूर्वोत्तर में सबसे प्रभावी उग्रवादी आंदोलन के समाप्त होने की दिशा में हम बढ़ गए हैं। समझौते के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा भी कि नार्थ-ईस्ट उनके दिल में बसता है। वे यह सुनिश्चित करेंगे कि नार्थ-ईस्ट उपेक्षित महसूस न करे। उन्होंने आश्वासन दिया है कि नगाओं का भरोसा नहीं टूटने देंगे।

मंगलवार, 4 अगस्त 2015

संसद में काम के उपाय सोचें

 सं सद के मानसून सत्र का लगभग आधा समय हंगामे की भेंट चढ़ चुका है। गतिरोध बरकरार है। लोकसभा अध्यक्ष ने सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष की संयुक्त बैठक से भी संसद के संचालन की राह निकालने का प्रयास किया। लेकिन, बात नहीं बनी। प्रतिपक्ष हंगामा खड़ा करने की जिद लेकर अड़ा हुआ है। इस बीच केन्द्रीय मंत्री महेश शर्मा ने 'संसद में काम नहीं तो वेतन नहीं' का मुद्दा उठा दिया है। सभी पार्टियों के नेताओं की राय इसके पक्ष में भी है और विपक्ष में भी। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल है कि वेतन महत्वपूर्ण है या काम? वैसे भी बहुत से नेता यह तय ही नहीं करते हैं कि उन्हें संसद में काम नहीं करना है, बस हंगामा करना है, संसद को ठप कर देना है। यह तो पार्टी तय करती है। नेताओं को तो बस पार्टी लाइन पर चलना होता है। ऐसे में नेताओं का वेतन काटने से क्या लाभ होगा? तब क्या संसद चल पाएगी? संभवत: नहीं? इसलिए सांसदों के वेतन से अधिक महत्वपूर्ण है संसद की कार्यवाही। जनकल्याण के लिए संसद का चलना जरूरी है।

संसद ठप करने की राजनीतिक होड़

 रा जनीतिक दलों के बीच नए तरह की होड़ शुरू हो गईं हैं। एक, संसद नहीं चलने देना। कैसे भी करके संसद का कामकाज ठप कर देना। दूसरी, प्रत्येक मामले में मंत्री-मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे की मांग करना। संसद के मानसून सत्र का पहला दिन भी इसी होड़ से उपजे हंगामे की भेंट चढ़ गया। मनी लॉन्ड्रिग के आरोप का सामना कर रहे आईपीएल के पूर्व अध्यक्ष ललित मोदी की मदद के मामले में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर विपक्ष ने सियासी संग्राम छेड़ दिया। मध्यप्रदेश के व्यापमं मामले में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का इस्तीफा मांगते हुए विपक्ष ने हंगामा खड़ा कर दिया। विपक्षी पार्टियों के रवैये के कारण पहले तो सदन की कार्यवाही को चार बार स्थगित किया गया। बाद में, कार्यवाही को पूरे दिन के लिए स्थगित करना पड़ा। आसार हैं कि प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस आगे भी सदन की कार्यवाही नहीं चलने देगी। सरकार को घेरना और सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करना, लोकतंत्र में विपक्ष की जिम्मेदारी भी है और कर्तव्य भी। लेकिन, बीते कुछ समय से देखने में आ रहा है कि सदन को ठप कर देना और प्रत्येक मामले में इस्तीफे की मांग करना विपक्ष की आदत बनता जा रहा है। सभी राजनीतिक दलों को इस पर विचार करना चाहिए, क्या यह रवैया सही है। जनता का ध्यान आकर्षित करने के लिए बेवजह हंगामा खड़ा करना हमारा मकसद नहीं होना चाहिए। अब जनता को गुमराह करने की जरूरत नहीं है, ये 'जनता' है, सब जानती है। मुद्दों पर असहमति है, आपत्ति है तो पहले सदन में उन पर खुलकर चर्चा तो हो। सरकार को बहस में, तर्कों के आधार पर मजबूर किया जाए, अपने फैसले लेने और सुधारने के लिए। विमर्श के बाद मुद्दा सुलझे नहीं तब तो दूसरे तरीके अपनाने का तुक बनता है। वरना, तो यही समझा जाएगा कि सदन को नहीं चलने देने की एक नई परिपाटी ने जन्म ले लिया है। 

नेता समझें, ये सियासत नहीं है

 भा रतीय नेता और राजनीति वोट बैंक की तलाश में अंधे गलियारों में भटक रहे हैं। आतंकवाद के नाम पर दोहरा रवैया अपनाने वाली कुछ चिह्नित पार्टियां और नेता पहले मुम्बई शृंखलाबद्ध धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फाँसी की सजा को माफ कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे थे। हद तो तब हो गई जब आतंकवाद को धर्म से न जोडऩे की दुहाई देने वाले ही एक आतंकवादी को धर्म विशेष से जोडऩे लगे। उसके बचाव में कुतर्कों पर भी उतर आए। न राष्ट्र के स्वाभिमान का ख्याल उन्होंने किया और न ही न्यायपालिका के प्रति सम्मान व्यक्त किया। नेताओं के बयानों को पढ़-सुन-देखकर आतंकवादी हमलों में अपने परिजनों को खोने वाले परिवार क्या सोच रहे होंगे? शहीद जवान आसमान से देख रहे होंगे तो खून के आँसू रो पड़ेंगे। लेकिन, नेताओं को शर्म नहीं, आतंकियों की पैरवी करने में, उन्हें 'जी' और 'साहब' कहने में भी। आतंकवादी की फाँसी पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने की कोशिश की गई। अपराधी को धर्म से जोड़ दिया। 

कोहिनूर लौटाएगा न माफी मांगेगा ब्रिटेन

 भा रत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नवंबर में ब्रिटेन जाने वाले हैं। यह दौरा भारत से अधिक ब्रिटेन के लिए महत्वपूर्ण है। एक जमाने में व्यापार के बहाने भारत में घुसने वाला ब्रिटेन फिर भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए भारत से गहरी दोस्ती ब्रिटेन की जरूरत भी है। बहरहाल, हाल में बार-बार ब्रिटेन का जिक्र हो रहा है। भारत के सांसद शशि थरूर ने ब्रिटेन को उसके ही घर में उसे असली चेहरा दिखा दिया। ऑक्सफोर्ड यूनियन सोसायटी में 'ब्रिटिश शासन' की धज्जियां उड़ाता हुआ महज 15 मिनट का उनके भाषण का वीडियो वायरल हो गया। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि ब्रिटेन ने 200 साल तक भारत में लूट मचाई। ब्रिटेन को समृद्ध करने के लिए भारत के खजाने लूटे गए थे। इसलिए ब्रिटेन से भारत को मुआवजा मिलना चाहिए। ब्रिटेन पर भारत का नैतिक कर्ज भी है। थरूर ने बताया कि जब अंग्रेज भारत आए तब दुनिया की इकोनॉमी में भारत का हिस्सा 23 प्रतिशत था। जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तब यह आंकड़ा महज चार फीसदी रह गया। वैसे, एक अध्ययन के मुताबिक 14वीं शताब्दी तक दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत का हिस्सा 66 फीसदी था। गांधीवादी विचारक और प्रख्यात इतिहासकार धर्मपाल ने लम्बे समय तक ब्रिटिश दस्तावेजों का अध्ययन कर यह बात सिद्ध भी की है कि अंग्रेजों के आने तक भारत प्रत्येक क्षेत्र में समृद्ध था। अंग्रेजों ने यहां के कपड़ा मिल, लोहा निर्माण के कारखाने, उत्पादन के अन्य उपक्रम और गांव-गांव में संचालित पाठशालाएं, सबको खत्म कर दिया। यह पहली बार है जब किसी कांग्रेसी सांसद ने ब्रिटेन के बारे में इस तरह बेबाकी से सच बोला है। प्रधानमंत्री सहित पूरे देश ने शशि थरूर की प्रशंसा की है। वरना तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल चुके पी. चिदम्बरम तो ब्रिटेन के सामने नतमस्तक थे। बल्कि इन्होंने तो यह तक कहा था कि हम धन्य हैं कि अंग्रेज हम पर शासन करने आए। 

बनाना होगा धरती को जीने लायक

 ह म सबके हृदय द्रवित हैं। आँखें नम हैं। भारत के पूर्व राष्ट्रपति, वैज्ञानिक और भारत रत्न डॉ. एपीजे कलाम चले गए। असल मायने में वे गए नहीं हैं बल्कि हमारे दिलों में और गहरे उतर गए हैं। यह मौका है, जब हमें कलाम साहब के सिद्धांतों को अपने व्यक्तित्व में उतार लेना होगा। वे चाहते थे कि उन्हें हमेशा शिक्षक के रूप में याद रखा जाए। संभवत: इसीलिए अपने पीछे एक अहम पाठ छोड़ गए हैं। एक बड़ा व्याख्यान, जो आईआईएम शिलांग में देना था- 'धरती को जीने लायक कैसे बनाया जाए।' उनके इस पाठ को हमें स्वयं भी बार-बार पढऩा है, जीवन में उतारना है और दूसरों को भी पढ़ाना है। उनके पाठ को आगे बढ़ाने के लिए प्रत्येक भारतीय को संकल्प लेना होगा। 

अब तो इस रोग से मुक्ति चाहिए

 आ खिर आतंकवाद के दंश से कब मुक्ति मिलेगी? यह सवाल प्रत्येक भारतवासी के दिल और जुबान पर है। आतंकवाद ने भारत के कोने-कोने को लहूलुहान कर दिया है। आतंकवादी हमलों में कभी आम आदमी मरते हैं, कभी सिपाही की जान जाती है तो कभी सैनिक शहीद होते हैं। तंग आ गए हैं, कायरों की हरकतों से। बहुत हुआ, अब इस नासूर का इलाज चाहिए। हमेशा-हमेशा के लिए। आतंकवाद को जड़ से खत्म करना कोई असम्भव कार्य नहीं है। यह संभव है। अमरीका और ब्रिटेन सहित अन्य देशों ने अपनी भूमि से आतंकवाद को उखाड़ फेंका है। फिर हम क्यों नहीं कर सकते? कर सकते हैं। आतंकवाद को रोकने के लिए फिर से एक कड़े कानून की जरूरत है। दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है। आतंकवाद को खत्म करने के लिए वर्तमान सरकार से तो और अधिक उम्मीद हैं। राष्ट्रवादी सरकार है। प्रधानमंत्री का सीना भी 56 इंच का है। सुरक्षा बलों को पिछली सरकार के मुकाबले अधिक समर्थन है। अभी हाल ही में म्यांमार की सीमा में घुसकर भारतीय सैनिकों ने आतंकवादियों को मार गिराया था। 

सोमवार, 3 अगस्त 2015

आईएसआईएस की भारत पर बुरी नजर

 अ मरीकी अखबार में खुलासा हुआ है कि आतंक का पर्याय बन चुके आईएसआईएस के निशाने पर भारत है। अमरीकी सुरक्षा एजेंसियों को तालिबान से जुड़े पाकिस्तानी नागरिक से कुछ दस्तावेज मिले थे। जिनका अध्ययन करने के बाद अमरीकी सुरक्षा एजेंसियां इस नतीजे पर पहुंची हैं कि भारत के खिलाफ जंग का ऐलान करके इस्लामिक स्टेट निर्णायक युद्ध छेडऩा चाहता है। वह जानता है कि भारत जैसे महत्वपूर्ण देश पर हमला किया गया तो अमरीका भी हस्तक्षेप करेगा। अमरीका के हस्तक्षेप करने के बाद आईएसआईएस दुनिया के तमाम आतंकवादी संगठनों और उसकी कट्टर धार्मिक विचारधारा में भरोसा रखने वाले मुस्लिम देशों को एकजुट कर इस्लामिक स्टेट की स्थापना के लिए निर्णायक युद्ध छेड़ सकता है। आईएसआईएस भारत पर हमला करने की तैयारी में जुटा हुआ है। इसके लिए वह अफगानिस्तान और पाकिस्तान में सक्रिय जिहादियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रच रहा है। भारत के विरुद्ध बड़ी आतंकी कार्रवाई में निश्चित ही आईएस को लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों का साथ मिल जाएगा। दोनों आतंकी गुट लम्बे समय से भारत को परेशान कर रहे हैं। भारत में आतंकी विस्फोट कराने में अमूमन इन दोनों गुटों का ही हाथ रहता है। इतिहास को देखते हुए पाकिस्तानी सेना पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता। खबर यह भी है कि पाकिस्तान ने भी आतंकियों को भारत में घुसपैठ करने की छूट दे दी है। पाकिस्तानी रेंजर्स आतंकियों को भारत की सीमा पार कराने में मदद करेंगे। पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान लगातार सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है। घुसपैठ कराने के लिए पाकिस्तानी सेना सीमा पर गोलाबारी करती है, ताकि भारतीय सेना का ध्यान बंटाया जा सके।