बुधवार, 30 दिसंबर 2015

सच से क्यों भाग रही है कांग्रेस?

 कां ग्रेस की मुंबई इकाई के मुखपत्र 'कांग्रेस दर्शन' में प्रकाशित लेखों में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और सोनिया गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठाए गए हैं। हालांकि लेखों के शीर्षक 'कांग्रेस की कुशल सारथी सोनिया गांधी' और 'पिता ने सबसे पहले सोनिया नाम से पुकारा था' से प्रथम दृष्टया यही प्रतीत होता है कि यह लेख कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की स्तुति में लिखे गए हैं। संभवत: लेख का शीर्षक देखकर ही 'कांग्रेस दर्शन' के कंटेंट एडिटर सुधीर जोशी गच्चा खा गए होंगे। कांग्रेस के मुखपत्र में नेहरू-गांधी परिवार के शीर्ष व्यक्तियों के खिलाफ सामग्री प्रकाशित होने की गलती पर सुधीर जोशी को उनके पद से हटा दिया गया है। हालांकि कांग्रेस के कई नेता कांग्रेस दर्शन के संपादक संजय निरुपम को जिम्मेदार मान रहे हैं। क्योंकि, उनकी देखरेख में ही 'कांग्रेस दर्शन' का प्रकाशन होता है।

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

नमो-नवाज का मेल, कांग्रेस का क्यों जला दिल

 प्र धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अप्रत्याशित तरीके से पाकिस्तान का दौरा करके दुनिया को चौंका दिया है। मोदी रूस से लौटते वक्त पहले अफगानिस्तान और फिर वहां से अचानक पाकिस्तान पहुंचे। लाहौर में 2 घंटे 40 मिनट रुके। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ उन्हें रिसीव कर जट्टी उमरा में अपने घर ले गए। मोदी करीब डेढ़ घंटे नवाज के घर थे। वहां नवाज की नातिन मेहरुन्निसा की शादी की रस्में चल रही थीं। नवाज शरीफ के जन्मदिन का भी अवसर था। करीब १२ साल बाद भारत के प्रधानमंत्री का पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को उनके घर पहुंचकर जन्मदिन की बधाई देना, नातिन को आशिर्वाद देना और माँ के चरण छूना, भारत-पाक संबंधों की नई इबारत लिखने जैसा है। 

नक्सलियों की क्रूरता के खिलाफ बच्चियों का आक्रोश

 ज ब कभी पुलिस के हाथों कोई नक्सली मारा जाता है, तब तमाम मानवाधिकारी और वामपंथी विचारक आसमान सिर पर उठा लेते हैं। लेकिन, नक्सलियों की क्रूरता के खिलाफ इनके होंठ सिल जाते हैं। धिक्कार है ऐसे वामपंथी विचारकों और मानवाधिकारियों के प्रति जिन्होंने एक दुधमुंही बच्ची की हत्या पर शर्मनाक तरीके से खामोशी की चादर ओढ़ रखी है। गौरतलब है कि बीजापुर जिले में क्रूर नक्सलियों ने चार माह की दुधमुंही बच्ची की जघन्य हत्या कर दी थी। आखिर कोई बता सकता है कि उस दुधमुंही बच्ची ने किसी का क्या बिगाड़ा होगा? नक्सलियों से उसकी क्या दुश्मनी रही होगी? कोई इतना निर्दयी कैसे हो सकता है कि एक नन्हीं कली को ही मसल दिया? इस तरह की हिंसा किस तरह के समाज का निर्माण करेगी? इस नक्सलवाद ने खूबसूरत बस्तर को नर्क बना दिया है। नक्सलियों की इस बर्बरता पर भले ही मीडिया, वामपंथी बुद्धिजीवियों और मानवाधिकारी खामोश रह गए हों लेकिन बस्तर की बच्चियों ने साहस दिखाया है। उन्होंने नक्सलवाद का घिनोना चेहरा दुनिया को दिखाने का प्रयास किया है। 

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

'सर्वसमावेशी है हिन्दुत्व' : उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी का स्वागत

 उ च्चतम न्यायालय ने 'हिन्दुत्व' को सर्वसमावेशी बताया है। न्यायालय का मानना है कि हिन्दुत्व में सबके लिए जगह है। उच्चतम न्यायालय की इस राय का अध्ययन उन सब सेक्युलर बुद्धिजीवियों और राजनेताओं को करना चाहिए, जिन्होंने देश में हिन्दुत्व को बदनाम करने का अधिकतम प्रयास किया है। अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए वामपंथी और तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवियों ने प्रेरणास्पद दर्शन 'हिन्दुत्व' को विवादास्पद बना दिया है। गैर-ब्राह्मणों को मंदिरों में पुजारी बनाने की अनुमति देने वाला तमिलनाडु का एक नियम उच्चतम न्यायालय में समीक्षा के लिए लाया गया था। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने इस नियम की समीक्षा करने से इनकार कर दिया है। तमिलनाडु में मंदिरों के पुजारी एक खास जाति के लोग ही हो सकते थे। तमिलनाडु सरकार ने कानून बनाकर दूसरे जाति के लोगों के लिए भी मंदिर का पुजारी बनने का रास्ता खोल दिया है। अब किसी भी जाति का वह व्यक्ति मंदिर का पुजारी बन सकता है, जिसे परंपराओं और रीति-रिवाजों की सही जानकारी हो।

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

माफी मांगी, लेकिन बाकि है अकड़

 त थाकथित असहिष्णुता के मसले पर अपने विवादास्पद बयान के लिए बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान ने माफी मांग ली है। उन्होंने कहा है कि देश में कोई असहिष्णुता नहीं है और अगर उन्होंने किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाई हो तो वह माफी मांगते हैं। गौरतलब है कि अपने ५०वें जन्मदिन के अवसर पर शाहरुख खान ने कहा था कि पिछले कुछ समय से देश में असहिष्णुता बढ़ रही है। देश का माहौल ठीक नहीं है। देश में तेजी से कट्टरता बढ़ रही है। शाहरुख खान ने अवार्ड वापस कर रहे लोगों का समर्थन भी किया था। उन्होंने कहा था कि यदि मुझसे कहा जाता है तो मैं भी प्रतीकात्मक सम्मान लौटा सकता हूँ। देश के बहुत बड़े वर्ग ने उनके इस बयान को देश की प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाला माना था। लोगों का मानना था कि शाहरुख खान को इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए। क्योंकि, देश में ऐसा कोई माहौल है नहीं। जनता ने शाहरुख खान से पूछा भी था कि देश के हालात जब बहुत खराब थे, तब वे चुप क्यों थे?

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

भ्रष्टाचार का आरोपी कैसे बन गया केजरीवाल का प्रधान सचिव

 दे श की जनता को हैरानी है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के सहारे राजनीति में आने वाले अरविन्द केजरीवाल और उनका दल भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी को पाक-साफ साबित करने का प्रयास क्यों कर रहा है? आआपा और केजरीवाल प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार के साथ खड़े क्यों दिखाई दे रहे हैं? मान लीलिए कि राजेन्द्र कुमार पर लगे आरोप सही साबित हो जाएं, तब अरविन्द केजरीवाल अपने वर्तमान व्यवहार के लिए क्या जवाब देंगे? किससे माफी मांगेंगे? उस समय किस आधार पर यू-टर्न लेंगे? जनता ने अरविन्द केजरीवाल को शासन-प्रशासन में से भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए चुना था, भ्रष्ट अधिकारियों का संरक्षण करने के लिए नहीं। इसलिए भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे प्रधान सचिव राजेन्द्र कुुमार के साथ खड़े होने से पहले अरविन्द केजरीवाल को ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए था। 

बुधवार, 16 दिसंबर 2015

ईमानदार को काहे का डर?

 दि ल्ली सचिवालय में मंगलवार की सर्द सुबह जैसे ही सीबीआई ने छापा मारा, देश में राजनीतिक गर्माहट फैल गई। आनन-फानन में ट्विट करके दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने दावा किया है कि छापा उनके दफ्तर पर मारा गया है। जबकि सीबीआई ने स्पष्ट कर दिया है कि छापे की कार्यवाही प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार के दफ्तर में की गई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने आदतन सीबीआई के छापे को केन्द्र सरकार के इशारे पर की गई कार्रवाई बता दिया। सीबीआई के छापे पर राजनीति करने के लिए अरविन्द केजरीवाल इतने उतावले हो गए कि प्रधानमंत्री के लिए अपमानजनक भाषा का उपयोग करने से भी नहीं चूके। केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कायर और मनोरोगी कह दिया। अपनी भाषा पर खेद जताने की जगह केजरीवाल ने शाम को गाँवों को भी बदनाम कर दिया। उन्होंने कहा कि हमारे शब्द खराब हो सकते हैं क्योंकि हम गाँव के साधारण लोग हैं, लेकिन सरकार के तो कर्म ही खोटे हैं। यह कितना उचित है कि अपनी बदजुबानी पर पर्दा डालने के लिए केजरीवाल गाँव और गाँववालों को बदनाम करें? अरविन्द केजरीवाल को किसने बताया कि गाँव के लोगों की भाषा असभ्य और अमर्यादित होती है?

मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

प्रतिपक्ष के प्रति गहराता अविश्वास, लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं

 कां ग्रेस खुद को सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी मानती है। यह सच भी है। आजादी के आंदोलन में शामिल कांग्रेस को छोड़ दें तब भी, आजाद भारत में कांग्रेस के पास भारतीय राजनीति का गहरा अनुभव है। लेकिन, इस समय संसद में और संसद के बाहर कांग्रेस का व्यवहार देखकर लगता नहीं कि वह अपनी विरासत को साथ लेकर चल रही है। जिस गंभीर राजनीति की अपेक्षा कांग्रेस से की जानी चाहिए, वह उतनी ही उथली राजनीति का प्रदर्शन कर रही है। संसद में मानसून सत्र से जारी हंगामे को शीतकालीन सत्र में सोमवार को भी कांग्रेसी सांसदों ने जारी रखा। कांग्रेसी सांसदों के व्यवहार को देखते हुए राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन को कहना पड़ गया है कि 'आपका यह बर्ताव अलोकतांत्रिक है।' उन्होंने यह भी कहा कि 'आपमें से कुछ लोग सदन को हाईजैक करना चाह रहे हैं। कुछ सदस्य अपनी मर्जी से सदन को चलाना चाहते हैं।' उपसभापति की यह टिप्पणी गंभीर है। यह टिप्पणी कांग्रेस के अलोकतांत्रिक व्यवहार पर करारी चोट है। लेकिन, शायद ही कांग्रेस इस टिप्पणी से संभले। 

सोमवार, 14 दिसंबर 2015

यह कैसा विरोध प्रदर्शन, कहाँ गए सहिष्णुता के ठेकेदार

 उ त्तरप्रदेश में हिन्दू महासभा के एक नेता कमलेश तिवारी पर आरोप है कि उसने मोहम्मद पैगम्बर के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की है। टिप्पणी से मुसलमान इतने उद्देलित हैं कि देश के अलग-अलग शहरों में भारी संख्या में एकत्र होकर कमलेश तिवारी को फांसी पर चढ़ाने की मांग कर रहे हैं। तिवारी का सिर कलम करने के फतवे जारी किए जा रहे हैं। इन रैलियों में आईएसआईएस के समर्थन में नारे लगाए जा रहे हैं। मुसलमानों के धार्मिक नेता रक्तपात के लिए मुसलमानों को उकसा रहे हैं। दस-बीस हजार मुसलमानों की भीड़ जोरदार नारे लगाकर सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने वाले भाषणों को अपना समर्थन दे रही है। इन रैलियों से लौटती भीड़ को हिंसक होते देखा जा रहा है। मध्यप्रदेश का इंदौर शहर इन जहरीली तकरीरों का असर देख चुका है। भला हो मध्यप्रदेश के शासन-प्रशासन का जिसने हिंसा पर तत्काल ही काबू पा लिया।

कांग्रेस का मनतंत्र

 कां ग्रेस ने जिस तरह से संसद को ठप करके रखा है, देश में उससे यही संदेश जा रहा है कि वह मनतंत्र से लोकतंत्र को चलाना चाह रही है। कांग्रेस का यह रवैया देश के साथ-साथ उसके लिए भी घातक साबित होगा। सत्तापक्ष और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसद को चलाने के सभी प्रयास कांग्रेस की मनमर्जी के आगे विफल साबित हो रहे हैं। कांग्रेस के साथ 'चाय पर चर्चा' भी काम नहीं आई। 'संविधान पर चर्चा' के साथ सकारात्मक संवाद के माहौल में संसद की शुरुआत भी विफल साबित होती दिख रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रतिपक्ष से संवाद करना, संसद चलाने के लिए आग्रह करना, प्रतिपक्ष से सहयोग की अपील करना और सदन में सबके प्रति सम्मान प्रकट करने वाला भाषण भी प्रतिपक्ष की कठोरता को मोम नहीं बना सका है। प्रतिपक्ष के कई सुझावों को भी सत्तापक्ष ने स्वीकार कर लिया है, तब क्यों कांग्रेस महत्वपूर्ण विधेयकों के पारित होने में बाधा खड़ी कर रही है? कारण, कांग्रेस पहले से ही तय करके बैठी है कि उसे तो हंगामा करना है, संसद को ठप करना है और सरकार को काम नहीं करने देना है। इसीलिए कांग्रेस गैरजरूरी और अप्रासंगिक मुद्दों को भी आधार बनाकर संसद में गतिरोध खड़ा कर रही है। 

जनभागीदारी ही असल लोकतंत्र

 प्र धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक मीडिया समूह की ओर से आयोजित कार्यक्रम में 'समावेशी जनतंत्र' के संदर्भ में लोकतंत्र को स्पष्ट करने की कोशिश की है। वास्तव में लोकतंत्र की असली परिभाषा जनता के बीच ले जाना आज की आवश्यकता है। समाज में लोकतंत्र की कल्पना उसी तरह बन गई है, जैसी एक कथा के अनुसार हाथी की कल्पना नेत्रहीनों में थी। जिस नेत्रहीन बंधु ने सूंड को टटोला, उसके अनुसार हाथी मोटी रस्सी की तरह। जिसने उसकी पूंछ को पकड़ा, उसके लिए हाथी पतली रस्सी की तरह और जिसने उसके पैर को पकड़ा उसके लिए हाथी खम्बे की तरह है। इसी तरह आज के दौर में लोकतंत्र को सब अपनी-अपनी दृष्टि से देख रहे हैं।

बुधवार, 9 दिसंबर 2015

राजनीतिक अपराध कर रही है कांग्रेस

 ने शनल हेराल्ड प्रकरण पर कांग्रेस राजनीतिक सहानुभूति बटोरने का प्रयास कर रही है। लगातार संसद में अवरोध खड़े कर रही कांग्रेस ने मंगलवार को भी इस मसले पर संसद को ही ठप कर दिया। कांग्रेस का यह कदम राजनीतिक अपराध है। भारत में कानून का शासन है और कानून की नजर में सभी नागरिक समान हैं। नेहरू-गाँधी परिवार से संबंध रखने के कारण सोनिया और राहुल न्यायालय से ऊपर नहीं हैं। न्यायालय ने उनके खिलाफ समन जारी किया है, उन्हें न्यायालय में पेश होने के लिए कहा है तो इस पर हाय-तौबा मचाने की क्या जरूरत है? उन्हें न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होकर अपना पक्ष प्रस्तुत करना चाहिए। व्यक्तिगत मामले को लेकर संसद को ठप करना देश की जनता के प्रति राजनीतिक अपराध नहीं तो क्या है? दरअसल, नेशनल हेराल्ड मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी की एक याचिका खारिज करते हुए दोनों को न्यायालय में पेश होने का फैसला सुनाया था। सोनिया और राहुल चाह रहे थे कि न्यायालय में उन्हें स्वयं पेश होने से छूट दी जाए? उनकी यह बात न्यायालय ने नहीं सुनी तो पूरी कांग्रेस असहिष्णु हो गई और संसद को अराजकता के हवाले कर दिया।

सोमवार, 7 दिसंबर 2015

प्रधान न्यायमूर्ति ने दिखाई देश की असली तस्वीर


 अ सहिष्णुता के झूठ पर भारत के प्रधान न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर ने करारी चोट की है। तथाकथित बढ़ती असहिष्णुता की मुहिम को प्रधान न्यायमूर्ति ने राजनीति से प्रेरित बताया है। उन्होंने कहा है कि देश में कहीं भी असहिष्णुता नहीं है। असहिष्णुता पर बहस के राजनीतिक आयाम हो सकते हैं, लेकिन कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए देश में न्यायालय है। जब तक उच्च न्यायालय है तब तक किसी को डरने की जरूरत नहीं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हम आपस में एक-दूसरे के प्रति प्रेम रखें और समाज में वैर भाव कम करके मिलजुल कर रहें। सरकार ने प्रधान न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर के बयान का स्वागत किया है। प्रधान न्यायमूर्ति के साथ-साथ देश के प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा भी यही बात कह रहे हैं कि देश में सब आपस में मिल-जुल कर रह रहे हैं। समाज में एकता है। असहिष्णुता सिर्फ मीडिया में दिखाई दे रही है। देश में भय का कोई माहौल नहीं है।

गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

प्रतिपक्ष है असहिष्णु

 लो कसभा में दो दिन असहिष्णुता पर जमकर बहस हुई। कांग्रेस और सीपीएम की मांग पर संसद में असहिष्णुता पर बहस कराई गई थी। आज से राज्यसभा में यह मुद्दा गर्माएगा। कांग्रेस और वामपंथी दल असहिष्णुता पर बहस के जरिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्र सरकार को घेरना चाहते थे। लेकिन, बहस के दौरान स्थितियां ऐसी बन गईं कि सरकार के लिए खोड़े गए गड्डे में ये खुद ही गिर गए। यूं तो देश पहले ही जान गया है कि असहिष्णुता का मुद्दा 'बनावटी' है। संसद में बहस से तस्वीर और साफ हो गई। बहस के दौरान देश ने देखा कि हकीकत में असहिष्णु कौन है? गलत बयानबाजी करने के बाद भी माफी मांगना तो दूर, सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम सरकार को ललकार रहे थे। क्या यही सहिष्णुता है? वामपंथियों के बारे में धारणा है कि ये 'आरोप लगाओ और भाग जाओ' की नीति का पालन करते हैं। मोहम्मद सलीम के असहिष्णु व्यवहार से यह भी साबित हो गया।

बुधवार, 2 दिसंबर 2015

दस साल का शिव'राज'

 शि वराज सिंह चौहान ने 29 नवम्बर, 2005 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तब उनके सामने अनेक चुनौतियां थी। चुनौतियां, भीतर (भाजपा) और बाहर, सब जगह थीं। लेकिन, शिवराज सिंह ने सभी चुनौतियां का सूझबूझ के साथ सामना किया। संगठन में एक से एक दिग्गज मौजूद थे, लेकिन मुख्यमंत्री पद के लिए भरोसा शिवराज पर दिखाया गया। उन्होंने संगठन के भरोसे को जीत लिया। बड़ों को आदर देकर, छोटों को स्नेह देकर और समकक्षों को साथ लेकर, बड़ी खूबसूरती से उन्होंने पार्टी में बढ़ती जा रही गुटबाजी पर काबू पाया। इस एकजुटता के कारण ही प्रदेश में भाजपा के सामने खांचों में बंटी कांग्रेस कहीं दिखती नहीं है। पार्टी-संगठन में खुद को मजबूत करते हुए उन्होंने प्रदेश में अपरिचित अपने चेहरे को लोकप्रिय बनाने का प्रयास शुरू कर दिया। अपने सरल, सहज और आम आदमी के स्वभाव के कारण शिवराज सिंह चौहान 'जनप्रिय' हो गए। प्रदेश की बेटियों के मामा, बुजुर्गों के लिए श्रवण कुमार, हमउम्रों के लिए पांव-पांव वाले भैया बन गए।

मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

असहिष्णुता पर चर्चा क्यों?

 कां ग्रेस और सीपीएम की मांग पर लोकसभा में 'असहिष्णुता' पर चर्चा कराई गई। जैसा कि पहले से ही तय था कि 'असहिष्णुता' के मुद्दे पर सदन में जमकर हंगामा होगा। क्योंकि, पक्ष-प्रतिपक्ष एक-दूसरे पर असहिष्णु होने का आरोप मढ़ेंगे। सरकार तो पहले ही कह चुकी है कि 'असहिष्णुता' का मुद्दा बनावटी है। जिस दादरी की घटना को आधार बनाकर 'असहिष्णुता' का मुद्दा उछाला जा रहा है, वैसी अनेक घटनाएं देश में पहले भी होती आईं हैं। बल्कि इससे भी अधिक गंभीर घटनाएं हो चुकी हैं। इसलिए सरकार यह स्वीकार करेगी नहीं कि देश का माहौल अचानक से डेढ़ साल में बिगड़ गया है। वहीं, कांग्रेस, कम्युनिस्ट और कुछ क्षेत्रीय पार्टियां किसी भी स्तर पर जाकर केन्द्र सरकार को झुकाना चाहती हैं। उनका कहना है कि जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की कमान संभाली है तब से देश में असहिष्णुता बढ़ गई है। 

दुरुपयोग के लिए ही जोड़ा था 'सेक्युलर'

 सं सद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत पहले 'संविधान दिवस' के साथ हो गयी है। गुरुवार को लोकसभा में संविधान पर सार्थक चर्चा हुई। राजनेताओं से आग्रह है कि पहले दिन की तरह ही आगे भी संसद की कार्यवाही संचालित करने में अपनी-अपनी सार्थक भूमिका का निर्वहन करें। पिछले सत्र की तरह शीतकालीन सत्र को हंगामे की भेंट न चढ़ाएं। प्रतिपक्षी दलों से इसका आग्रह सत्तापक्ष और लोकसभा अध्यक्ष भी कर चुकी हैं। बहरहाल, संविधान पर चर्चा करते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 'सेक्युलर' शब्द के दुरुपयोग का मामला उठा दिया है। उन्होंने कहा कि सेक्युलर शब्द का सबसे अधिक दुरुपयोग किया जा रहा है। गृहमंत्री की इस टिप्पणी पर कांग्रेस सहित कुछ प्रतिपक्षी दलों ने विरोध में अपनी प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार, भाजपा और आरएसएस को घेरने का प्रयास किया। उन्होंने आरोप लगाया कि जिन लोगों ने संविधान पर हमला किया है, वे ही आज संविधान पर चर्चा कर रहे हैं। सोनिया ने कहा कि आज संविधान खतरे में हैं। देश में जो कुछ चल रहा है, वह संविधान के खिलाफ है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सरकार, भाजपा और आरएसएस की तरफ अंगुली उठाते वक़्त संभवतः भूल गयी होंगी कि 'संविधान की आत्मा' पर कुठाराघात कांग्रेस ने ही किया है। 

आमिर बताएं कि उन्होंने पत्नी को अतुल्य भारत दिखाया या नहीं?

 अ सहिष्णुता का मुद्दा शांत होने की जगह रह-रहकर उठ रहा है। अब फिल्मी कलाकार आमिर खान ने असहिष्णुता को हवा दी है। आठवें रामनाथ गोयनका अवार्ड समारोह में आमिर खान ने यह कहकर निराधार बहस को फिर से तूल दे दिया है- 'पिछले 6-8 महीने से असुरक्षा और डर की भावना समाज में बढ़ी है। यहां तक कि मेरा परिवार भी ऐसा ही महसूस कर रहा है। मैं और पत्नी किरण ने पूरी जिंदगी भारत में जी है, लेकिन पहली बार उन्होंने मुझसे देश छोडऩे की बात कही। यह बहुत ही खौफनाक और बड़ी बात थी, जो उन्होंने मुझसे कही। उन्हें अपने बच्चे के लिए डर लगता है। उन्हें इस बात का भी डर है कि आने वाले समय में हमारे आसपास का माहौल कैसा होगा? वह जब अखबार खोलती हैं तो उन्हें डर लगता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अशांति बढ़ रही है।' 

बुधवार, 25 नवंबर 2015

'लालू-केजरी मिलन' पर अन्ना की खुशी और अरविन्द की 'सफाई'

 भ्र ष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का चेहरा रहे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने 'लालू-केजरी मिलन' प्रकरण पर खुशी जताई है। लेकिन, यह खुशी अरविन्द केजरीवाल के लिए चिंता का बहुत बड़ा विषय होना चाहिए। कई ऐसे अवसर-प्रकरण गवाह हैं जब सब ओर से केजरीवाल की कड़ी आलोचना हो रही थी तब अन्ना ने केजरीवाल की पीठ पर हाथ रखा था। उनके प्रयासों का समर्थन किया था। आलोचकों के सामने खड़ा होने का हौसला दिया था। लेकिन, भ्रष्टाचार को गले लगाने के प्रकरण में अन्ना ने केजरीवाल से न केवल पल्ला झड़ा लिया है बल्कि कड़ी टिप्पणी भी कर है। उन्होंने कहा- 'लालू प्रसाद यादव को गले लगाकर अरविन्द ने अच्छा काम नहीं किया है। इससे समाज में गलत संदेश गया है। मैं खुश हूं कि मैं अरविन्द से नहीं जुड़ा हूं। वरना केजरीवाल की इस गलती पर लोग मुझ पर भी सवाल उठाते।'

शनिवार, 21 नवंबर 2015

बेटी के लिए कविता-2


"मेरी चिड़िया, 
आज तुम पूरे एक साल की हो गयी हो। 
तुम्हारी हँसी के मौसम में मौज का एक साल कब निकल गया, 
पता ही नहीं चला। 
तुम्हारे आने के बाद असल में अहसास हुआ, 
पिता होने का अर्थ क्या है? 
हृदय और अधिक संवेदनशील हो गया है। 
लौट आया है मेरा भी बचपन तुम्हारे साथ। 
तुम्हारी नन्ही कोमल अंगुलियां जब मेरे गालों को स्पर्श करती हैं, 
मेरा रोम-रोम पुलकित हो उठता है। 
सुबह-सुबह ऑफिस जाते वक्त रोज देखता हूँ, 
किवाड़ के उस पार छूटता हुआ मेरा मन 
और इस पार घुटने-घुटने चलकर आता तुम्हारा मन। 
शाम को घर लौटने की व्याकुलता रहती है, 
तुम्हारी हँसी के साथ झरने वाले 
चमेली-चम्पा-गेंदा-गुलाब समेटने के लिए। 
पता नहीं तुम कौन-सा जग जीत लेती हो, 
मुझे सामने पाकर। 
अपने नन्हे घुटनों पर खड़ी हो जाती हो, दोनों हाथ विजयी मुद्रा में उठाकर। 
जब तक कलेजे से लटक नहीं जाती हो, 
सुकून नहीं मिलता तुम्हें और मुझे भी। 
मेरे साथ से तुम्हें कौन-सा खजाना मिलता, मुझे पता नहीं। 
लेकिन हाँ, मुझे जरूर धरती पर स्वर्ग मिल जाता है। 
तुम्हारी अजब लीला है। 
मेरे घर आने के बाद तो जैसे धरती पर कांटे उग आते हैं, 
गोदी से उतरने का नाम नहीं लेती हो। 
फिर तो नींद भी तुम्हें मेरे कंधे पर ही आती है। 
खैर, बहुत बात हैं लिखने-कहने को, ख़त्म नहीं होंगी। 
कभी-कभी मन करता है, घड़ी की सुईयों से लटक जाऊँ, 
कालचक्र के पहिये को थाम लूँ। 
ऐसे ही रहे यह समय, हमेशा के लिए। 
तुम नन्ही परी और मैं अल्हड़ पिता।"
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- लोकेन्द्र सिंह -

शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

कांग्रेस की पाकिस्तान से क्या सांठगांठ है?

 कां ग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने पाकिस्तान में भारतीय जनता का अपमान किया है। पाकिस्तानी टीवी चैनल से बातचीत करते हुए मणिशंकर अपनी जुबान पर काबू खो बैठे। एंकर ने उनसे पूछा कि भारत-पाकिस्तान के बीच फिर से दोतरफा बातचीत कैसे शुरू की जा सकती है? मणिशंकर ने बहुत उतावले होते हुए जवाब दिया- 'मोदी को हटाइये, हमको लाइये।' क्या मणिशंकर इस देश की जनता को बता सकते हैं कि पाकिस्तान कांग्रेस को कैसे सत्ता में ला सकता है? चुनावों में जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस पाकिस्तान से क्या सांठगांठ कर रही है? कांग्रेस के एक और बड़े नेता सलमान खुर्शीद ने भी पाकिस्तान जाकर हाल में विवादित बयानबाजी की थी। उनके बयानों के कारण भी भारतीय कूटनीति को नुकसान पहुंचा है। दोनों नेताओं ने भारत के सामने असहज स्थितियां खड़ी कर दी हैं। पाकिस्तान दोनों नेताओं के बयानों का भारत के खिलाफ कूटनीतिक उपयोग करेगा।

बुधवार, 18 नवंबर 2015

क्या अब राष्ट्रपति की सुनेंगे साहित्यकार?

 रा ष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सम्मान लौटा रहे तथाकथित बुद्धिजीवियों को नसीहत दी है। उन्होंने कहा है कि जिन लोगों को देश की तरफ से प्रतिष्ठित सम्मान/पुरस्कार मिलते हैं, उन्हें इन पुरस्कारों का सम्मान करना चाहिए। अपनी असहमति को बहस, तर्क और विमर्श के माध्यम से प्रकट किया जाना चाहिए। भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। राष्ट्रपति के बयान के बाद सम्मान लौटाने वाले लोगों के सामने बड़ी विकट स्थिति खड़ी हो गई है। पहले से ही उनके सम्मान वापसी अभियान का विरोध हो रहा था। अनुपम खेर, नरेन्द्र कोहली, सूर्यकांत बाली, मधुर भंडारकर सहित अनेक हस्तियां सम्मान वापस करने वाले लोगों के चयनित दृष्टिकोण और चयनित विरोध के खिलाफ प्रदर्शन कर चुकी हैं। सम्मान वापसी अभियान के प्रत्युत्तर में किताब वापसी अभियान भी पाठकों ने चला रखा है। किताब वापसी अभियान में पाठक सम्मान लौटाने वाले साहित्यकारों की पुस्तकें उनके घर जाकर वापस कर रहे हैं। अब राष्ट्रपति की टिप्पणी ने सम्मान लौटाकर विरोध करने के तरीके पर सबसे बड़ा प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया है।

उत्तरप्रदेश में महागठबंधन की सुगबुगाहट

 बि हार में राजद, जदयू और कांग्रेस के महागठबंधन की विजय के बाद अब उत्तरप्रदेश में भी भाजपा से पार पाने के लिए एक नए महागठबंधन की सुगबुगाहट हो रही है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे और हवा दे दी है। उन्होंने कहा है कि बिहार की तरह उत्तरप्रदेश में भी महागठबंधन बन सकता है। हालांकि उनके चाचाश्री और कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव ने पहली फुरसत में ही उत्तरप्रदेश में महागठबंधन से इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि प्रदेश में समाजवादी पार्टी अपनी दम पर चुनाव लडऩे में सक्षम है। यदि गठबंधन बनाना ही होगा तो फैसला राष्ट्रीय नेतृत्व करेगा। इससे पूर्व राज्यमंत्री फरीद महमूद किदवई भी कह चुके हैं कि उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को मिलकर चुनाव लडऩा चाहिए। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी ने भी भारतीय जनता पार्टी को कमजोर करने के लिए उत्तरप्रदेश में महागठबंधन की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि उत्तरप्रदेश में ही क्यों, पूरे देश में भाजपा विरोधियों को एकजुट हो जाना चाहिए। 

सोमवार, 16 नवंबर 2015

आतंकवाद के खिलाफ प्रतिबद्धता और एकजुटता की जरूरत

 दु निया के खूबसूरत शहर पेरिस पर इस्लामिक स्टेट (आईएस) का हमला समूची मानवता पर हमला है। आईएस के आतंकियों ने पेरिस की सड़कें लाल कर दी हैं। विश्व स्तब्ध है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए विख्यात फ्रांस पर यह तीसरा आतंकी हमला है। कार्टून पत्रिका ’शार्ली एब्दो’ के कार्यालय पर हुआ हमला अभी दुनिया भूली भी नहीं थी कि आईएसआईएस ने 14 नवम्बर (शुक्रवार) को फ्रांस की राजधानी पेरिस में सिलसिलेवार धमाके करके सैकड़ों लोगों की जान ले ली। हमले में सैकड़ों घायल हैं, जो जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते हुए ईश्वर से पूछ रहे हैं कि आखिर उनका क्या दोष था? ये दरिन्दे मानवता का रक्त कब तक बहायेंगे? आईएस के इस हमले से फ्रांस ही नहीं दहला है, आतंक के निशाने पर रहने वाले दूसरे देश भी चिंतित हो उठे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने अपने देश की जनता को भरोसा और साहस देते हुए कहा है कि आतंकवाद के विरुद्ध हम एक ऐसा युद्ध छेड़ने जा रहे हैं, जिसमें किसी पर रहम नहीं होगा। आतंकियों को पता चलना चाहिए कि उनका सामना ‘प्रतिबद्ध-एकजुट’ फ्रांस से हुआ है।

रविवार, 15 नवंबर 2015

गांधी और बुद्ध का है देश भारत

 भा रत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ’असहिष्णुता’ का सामना इंग्लैंड में भी करना पड़ गया। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के साथ संयुक्त प्रेसवार्ता को संबोधित करने के दौरान बीबीसी के पत्रकार ने मोदी से सवाल किया था कि भारत क्यों लगातार असहिष्णुता बनता जा रहा है? प्रधानमंत्री मोदी ने इसका बड़ा ही खूबसूरत और सटीक जवाब दिया। उन्होंने कहा- ‘भारत बुद्ध की धरती है, गांधी की धरती है और हमारी संस्कृति समाज के मूलभूत मूल्यों के खिलाफ किसी भी बात को स्वीकार नहीं करती है।’ गांधी और बुद्ध शांति और सहिष्णुता के वैश्विक प्रतीक हैं। इनके माध्यम से दुनिया को भारत का चरित्र बताना अधिक आसान है। भारत में जो बुद्धिजीवी ‘कथित बढ़ती असहिष्णुता’ को मुद्दा बनाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने की योजना बना रहे हैं, उन्हें भी दुनिया को यह संदेश देना चाहिए था। लेकिन, अपने स्वार्थ के कारण उन्होंने भारत की छवि का ध्यान नहीं रखा। अपने बाहरी संपर्कों का उपयोग करते हुए उन्होंने ‘असहिष्णुता’ को आधार बनाकर दुनिया में भारत की छवि को नकारात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है।

भाजपा के लिए ठीक नहीं आपसी मतभेद

 बि हार चुनाव की करारी हार से भारतीय जनता पार्टी को कितना नुकसान पहुंचेगा, इसका आकलन अभी नहीं किया जा सकता। लेकिन, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का आपसी मतभेद जरूरत पार्टी को गंभीर क्षति पहुंचा सकता है। बिहार चुनाव के बाद भाजपा नेता कुछ असंतुलित हो गए हैं। मध्यप्रदेश के कद्दावर नेता और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने पार्टी लाइन से अलग चल रहे सांसद शत्रुघन सिन्हा के लिए अमर्यादित टिप्पणी की तो बदले में सिन्हा ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, शांता कुमार, यशवंत सिन्हा और मुरली मनोहर जोशी ने भी बेमौके अपना आक्रोश प्रकट किया है। चारों वरिष्ठ नेता पार्टी के हितचिंतक के तौर पर देखे जाते हैं। बाहरी तौर पर देखने पर उनके बयान में पार्टी हित ध्वनित भी होता दिख रहा है। लेकिन, असलियत तो सब जानते हैं कि बिहार की चुनावी हार के संबंध में मीडिया में बयान जारी करके उन्होंने पार्टी की चिंता की है या स्वयं की?

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

बीसीसीआई में स्वच्छता अभियान शुरू

 भा रतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की 85वीं वार्षिक आम सभा (एजीएम) की बैठक में क्रिकेट को साफ-सुथरा बनाने के लिए कुछ अहम फैसले लिए गए। आर्थिक अनियमितता और स्पॉट फिक्सिंग जैसे गंभीर आरोप झेल रहे एन. श्रीनिवासन को बीसीसीआई ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट बोर्ड (आईसीसी) के अध्यक्ष पद से हटा दिया है। अब बीसीसीआई अध्यक्ष शशांक मनोहर श्रीनिवासन की जगह वर्ष 2016 तक आईसीसी का अध्यक्ष पद संभालेंगे। आईपीएल की टीम चैन्नई सुपर किंग के मालिक रहे श्रीनिवासन के कारण पिछले कुछ समय में भारतीय क्रिकेट नकारात्मक खबरों में रही है। श्रीनिवासन प्रकरण के कारण क्रिकेट और खिलाडिय़ों के प्रति खेल प्रेमियों का भरोसा कम हुआ है। जिसे संभावनाओं का खेल माना जाता था, उसमें लोगों को आशंकाएं अधिक नजर आने लगीं। किसी मैच में अप्रत्याशित तरीके से उलट-फेर हो जाए तो उसमें 'फिक्सिंग' के सूत्र तलाशे जाने लगते हैं। हम कह सकते हैं कि क्रिकेट के प्रत्येक मैच को संदिग्ध नजर से देखा जाने लगा है। यह भारतीय क्रिकेट के लिए खतरनाक संकेत हैं।

सोमवार, 9 नवंबर 2015

महागठबंधन का बिहार

 बि हार विधानसभा चुनाव का परिणाम आ गया है। बिहार की जनता ने नीतीश कुमार के प्रति फिर से भरोसा जताया है। पूर्ण बहुमत के साथ जनता ने बिहार में अच्छे दिन लाने की जिम्मेदारी महागठबंधन को सौंपी है। जनादेश का स्वागत किया जाना चाहिए। बिहार में करारी हार झेलने को मजबूर भारतीय जनता पार्टी को ईमानदारी से विमर्श और विश्लेषण करना चाहिए। भाजपा की हार में कुछ कारण तो जाहिर हैं। जैसे- स्थानीय नेताओं-कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करना। विरोधियों की सांप्रदायिक धुव्रीकरण की चाल का तोड़ नहीं निकाल पाना। राष्ट्रीय नेताओं का उल-जलूल बयानबाजी करना। जनता से सीधे संवाद की कमी। दिल्ली चुनाव में मिली हार से सबक नहीं लेना भी भाजपा की हार का बहुत बड़ा कारण है। भाजपा कितना विचार करेगी और कितना मानेगी ये उसके भीतर की बात है। लेकिन, भाजपा को यह समझ लेना चाहिए कि तुरूप के इक्के का उपयोग कब करना चाहिए और कितना करना चाहिए। भाजपा ने नरेन्द्र मोदी का इस तरह उपयोग किया, जैसे वे ही बिहार के मुख्यमंत्री के दावेदार हों। स्थानीय नेताओं को आगे करके यदि बिहार के रण में भाजपा उतरती तो शायद अधिक अनुकूल परिणाम आते। शीर्ष नेतृत्व को हार की जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए। बहानेबाजी और अगर-मगर तर्कों से हार की जिम्मेदारी को कम नहीं किया जा सकता, क्योंकि वर्ष २०१० की तुलना में इस चुनाव में भाजपा को सीटों का भी नुकसान हुआ है।

शनिवार, 7 नवंबर 2015

राजनीति की दिशा तय करने का वक्त

 'म दर ऑफ इलेक्शन' माने गए बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे रविवार को आने हैं। परिणाम का दिन नजदीक आते-आते अमूमन यह स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि जीत का ताज किससे सिर पर सजेगा। लेकिन, बिहार चुनाव इसका अपवाद दिख रहा है। यह कहना मुश्किल हो रहा है कि बिहार में भाजपानीत एनडीए की सरकार बनेगी या फिर महागठबंधन को बहुमत मिलेगा? शुरुआत से ही मुकाबला कांटे का रहा है। दोनों और से यथासंभव ताकत झौंकी गई है। किसी ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता दांव पर है तो दूसरी ओर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक भविष्य। चुनाव परिणाम को दोनों की लोकप्रियता से जोड़कर देखा जाएगा।

असहिष्णुता पर अब कांग्रेस की राजनीति

 दे श में असहिष्णुता का माहौल हो न हो, राजनीति जरूर ऐसा अहसास करा देगी। बढ़ती कथित असहिष्णुता के खिलाफ सम्मान वापसी के प्रपंच को अब कांग्रेस ने लपक लिया है। इस मुद्दे पर कांग्रेस के तेवर देखकर समझा जा सकता है कि 'असहिष्णुता का माहौल' अभी ठंडा होने वाला नहीं है। इस बार (शीतकालीन सत्र) संसद को ठप करने का नया मुद्दा कांग्रेस को मिल गया है। कांग्रेस नेता मंगलवार को संसद भवन से मार्च करते हुए राष्ट्रपति भवन पहुंचे। पैदल मार्च में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मनमोहन सिंह सहित प्रमुख कांग्रेस नेता शामिल थे। उन्होंने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में डर और असहनशीलता के माहौल पर चिंता व्यक्त की गई है। कौन-सा डर और कैसी असहनशीलता? अब इसको स्पष्ट करने की जरूरत रह नहीं गई है। 

वैचारिक असहिष्णुता के शिकार मोदी

 'प्र धानमंत्री नरेन्द्र मोदी वैचारिक असहिष्णुता के सबसे बड़े शिकार और सबसे ज्यादा पीडि़त हैं।' वित्तमंत्री अरुण जेटली ने देश के सामने यह प्रश्न खड़ा करके सबको विचार करने पर मजबूर कर दिया है। उन्होंने सीधा-सा सवाल भी बुद्धिवादियों से पूछ लिया है कि 'पिछले पंद्रह सालों से नरेन्द्र मोदी के साथ उनके विरोधी जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं, उस व्यवहार को किस श्रेणी में रखा जाए?' अचानक तेजी से बढ़ती कथित असहिष्णुता की बात कहकर बुद्धिवादियों ने जिस तरह की मुहिम चलाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा सरकार को घेरने का प्रयास किया है, उससे क्या समझा जाए? इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता है कि बढ़ती असहिष्णुता के नाम पर देश-दुनिया में भारत की छवि खराब करने वाले बुद्धिवादियों का समूह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से पूर्व से 'नफरत' की हद तक असहमत रहा है। 

मंगलवार, 3 नवंबर 2015

आरएसएस की विचारधारा बांझ है, आपकी क्या है?

 सा हित्य अकादमी सम्मान लौटाकर सुर्खियां बटोर रहे पूर्व ब्यूरोक्रेट अशोक वाजपेयी कहते हैं कि तर्क का उत्तर प्रतितर्क से दिया जा सकता है। लात तो गधे भी मारते हैं। सोशल मीडिया से लेकर साहित्यिक हलकों में लोग सवाल कर रहे हैं, जिस भाषा-शैली का उपयोग अशोक वाजपेयी कर रहे हैं, क्या उससे कहीं से भी प्रतीत होता कि वे कवि हैं? वाजपेयी जी की शब्दावली को समझने के लिए 'हंस' पत्रिका के संपादक रहे वामपंथी कथाकार राजेन्द्र यादव का कथन याद करना चाहिए। उन्होंने कहा था कि अशोक वाजपेयी अफसर हैं और उन्हें हरेक के बारे में यह कहने का अधिकार है कि वह निकम्मा है, मूर्ख और बेकार व्यक्ति है। निर्मल वर्मा की 80वीं सालगिरह पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। आलोचक डॉ. नामवर सिंह का उस मौके पर व्याख्यान हुआ। व्याख्यान का पोस्टमार्टम करते हुए वाजपेयी ने डॉ. सिंह के लिए बौद्धिक शिथिलता, दयनीय और नैतिक पतन जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उन्हें गैर-ईमानदार भी कहा था। यहां ईमानदारी से तात्पर्य अपनी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता से है, जिसका प्रकटीकरण आज साहित्यकारों का यह समूह कर रहा है। नामवर सिंह के संबोधन के लिए वाजपेयी छांट-छांटकर शब्द लाए थे। उनके शब्द चयन पर शुरू हुई बहस के संदर्भ में ही राजेन्द्र यादव ने उक्त टिप्पणी की थी। वैसे जिन उदय प्रकाश के नक्शे-कदम पर अशोक वाजपेयी ने साहित्यक अकादमी सम्मान लौटाकर वितंडावाद खड़ा किया है, एक बार उनके कथन को भी याद कर लेना चाहिए। उदय प्रकाश ने वाजपेयी को 'सत्ता का दलाल' कहा था। बहरहाल, इतनी बात इसलिए की है ताकि अशोक वाजपेयी के शब्दकोश के बारे में सब जान लें। यह भी जान लें कि साहित्य जगत में अशोक वाजपेयी को बतौर साहित्यकार कोई गंभीरता से नहीं लेता है। उन्होंने सत्ता की करीबी का लाभ उठाकर खुद को 'बड़े साहित्यकार' के रूप में स्थापित किया है। भले ही आपके खेमे का व्यवहार धर्मनिरपेक्ष न हो, प्रगतिशील होने के मायने भी नहीं पता हों, साहित्यकार का धर्म भी नहीं जानते हों, लेकिन यह खेमा इन सारे शब्दों पर पट्टा कराकर बैठ गया है। दूसरा पक्ष भले ही सभी धर्मों को समान नजरिए से देखने की बात कह रहा है, लेकिन ये उसे सांप्रदायिक ही कहते हैं। भगवा जैस शब्द को भी इस समूह ने गाली बना दिया है। खैर, छोडि़ए शब्दों के मायाजाल को। आपका शब्दकोश, आपको मुबारक। चलिए, आगे बढ़ते हैं।

रविवार, 1 नवंबर 2015

संघ और राजनीति

 रा ष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस दशहरे (22 अक्टूबर, 2015) पर अपने नब्बे वर्ष पूरे कर रहा है। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने वर्ष 1925 में जो बीज बोया था, आज वह वटवृक्ष बन गया है। उसकी अनेक शाखाएं समाज में सब दूर फैली हुई हैं। संघ लगातार दसों दिशाओं में बढ़ रहा है। नब्बे वर्ष के अपने जीवन काल में संघ ने भारतीय राजनीति को दिशा देने का काम भी किया है। आरएसएस विशुद्ध सांस्कृतिक संगठन होने का दावा करता है, फिर क्यों और कैसे वह राजनीति को प्रभावित करता है? यह प्रश्न अनेक लोग बार-बार उठाते हैं। जब 'संघ और राजनीति' की बात निकलती है तो बहुत दूर तक नहीं जाती। दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निकटता से नहीं जानने वाले लोग इस विषय पर भ्रम फैलाने का काम करते हैं। राजनीति का जिक्र होने पर संघ के साथ भारतीय जनता पार्टी को नत्थी कर दिया जाता है। भाजपा संघ परिवार का हिस्सा है, इस बात से किसी को इनकार नहीं है। लेकिन, भाजपा के कंधे पर सवार होकर संघ राजनीति करता है, यह धारणा बिलकुल गलत है। देश के उत्थान के लिए संघ का अपना एजेंडा है, सिद्धांत हैं, जब राजनीति उससे भटकती है तब संघ समाज से प्राप्त अपने प्रभाव का उपयोग करता है। सरकार चाहे किसी की भी हो। यानी संघ समाज शक्ति के आधार पर राजसत्ता को संयमित करने का प्रयास करता है। अचम्भित करने वाली बात यह है कि कई विद्वान संघ के विराट स्वरूप की अनदेखी करते हुए मात्र यह साबित करने का प्रयास करते हैं कि भाजपा ही संघ है और संघ ही भाजपा है।

शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

नाटक नहीं, संवाद का प्रयास कीजिए

 क थित बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में साहित्यकारों की सम्मान वापसी की मुहिम में अब कलाकार, इतिहासकार और वैज्ञानिक भी शामिल हो गए हैं। पद्म भूषण सम्मान लौटाने की घोषणा करने वाले वैज्ञानिक पुष्पमित्र भार्गव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाया है कि वे भारत को हिन्दू धार्मिक तानाशाह बनाना चाहते हैं। यह बात अलग है कि उनके पास ऐसी कोई दलील नहीं है, जिससे वह अपने आरोप को साबित कर सकें। उन्होंने भी साहित्यकारों के रटे-रटाए आरोपों को ही दोहराया है। प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठाने वाले साहित्यकारों, इतिहासकारों, कलाकारों और वैज्ञानिकों ने सरकार से संवाद करने के लिए कितने प्रयास किए हैं? या सिर्फ अपनी भैंस हांके जा रहे हैं? वामपंथियों का मूल चरित्र है-'आरोप लगाओ और भाग खड़े हो।' साहित्य अकादमी अवार्ड लौटाने वाले अशोक वाजपेयी खुद भी स्वीकारते हैं कि विरोध में 'नाटक' लाने के लिए विरोध का यह तरीका चुना है।

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव क्यों?

 सु प्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ की आड़ में मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव पर चिंता जताई है। मुस्लिम महिलाओं की दशा सुधारने और उन्हें अन्य धर्म की महिलाओं के समान अधिकार दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ की समीक्षा करने का फैसला किया है। महिला सशक्तिकरण, नारी सम्मान और समानता की दिशा में सुप्रीम कोर्ट की इस पहल का स्वागत होना चाहिए। चूंकि मामला कथित अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ा है, इसलिए राजनीति से यह अपेक्षा बेमानी है कि वे मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए कोई पहल करते। लेकिन, उनसे आग्रह है कि इस मसले पर 'अल्पसंख्यक हितों पर कुठाराघात' का वितंडावाद खड़ा न करें। सुप्रीम कोर्ट का साथ देकर महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिलाएं।

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

पाकिस्तान ने माना, उसने फैलाया है आतंकवाद

 पा किस्तान आतंकवाद का पालन-पोषण करता रहा है, यह बात वहां के पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व सेना जनरल परवेज मुशर्रफ ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार कर ली है। मुशर्रफ ने पाकिस्तानी चैनल 'दुनिया टीवी' को दिए साक्षात्कार में माना कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को खड़ा करने और उसे बढ़ावा देने के लिए आतंकवादियों को पैसा और प्रशिक्षण देता रहा है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान द्वारा फैलाए आतंकवाद से भारत लम्बे समय से पीडि़त है। भारत बरसों से कहता आ रहा है कि पाकिस्तान भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया में भी आतंकवाद को पैर पसारने में मदद करता रहा है। लेकिन, यह सब जानकार भी अमरीका और चीन जैसे देश पाकिस्तान को आर्थिक मदद करते रहे। दूसरे देशों से प्राप्त आर्थिक मदद का उपयोग पाकिस्तान ने अपनी आवाम की बेहतरी के लिए नहीं किया बल्कि आतंकवाद को पालने के लिए किया।

रविवार, 25 अक्तूबर 2015

कौन हैं गोमांस के लिए भूखे बैठे लोग?


'मैंने गाय का मांस खाया है। हिन्दुओ आओ मेरी हत्या कर दो।' 
'मैं गाय काट रहा हूं। तुम मेरा क्या बिगाड़ लोगे?'
'मैं तो बड़े मजे से गोमांस खाता हूं।' 
'हिन्दुओं के लिए होगी गाय माता, मेरे लिए तो एक पशु से अधिक कुछ नहीं।' 
'वैदिक काल में ऋषि-मुनि खाते थे गोमांस।' 
'मैं बीफ फेस्टीवल मना रहा हूं, मेरा कोई क्या बिगाड़ सकता है?' 
आपको नहीं लगता ये बयान जानबूझकर हिन्दुओं को चिढ़ाने के लिए दिए गए हैं। हिन्दुओं की भावनाओं का मजाक बनाकर कोई आखिर क्या हासिल करना चाहता है? ये बयान सांप्रदायिक सौहार्द बनाने वाले हैं या बिगाडऩे वाले? दरअसल, इस समय गाय के बहाने सब अपना लक्ष्य भेदने का प्रयास कर रहे हैं। लक्ष्य भाँति-भाँति के हैं, राजनीतिक, सांप्रदायिक और वैचारिक।

शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

'बौद्धिक आतंकवाद' का विरोध

 के न्द्र सरकार का विरोध करने के लिए सम्मान वापसी का अभियान चलाने वाले साहित्यकारों के खिलाफ भी विरोध तेज होता जा रहा है। यह शुभ है या अशुभ, अभी कहा नहीं जा सकता। लेकिन, इतना तो है कि साहित्यकारों की असलियत जनता के सामने आने लगी है। चरित्र अभिनेता अनुपम खैर ने दशहरे के दिन ट्वीट किया था- 'अब वक्त आ गया है कि नकली धर्मनिरपेक्ष पाखंडियों का पर्दाफाश किया जाए। इनके कारण से हमारी एकता खतरे में आ गई है।' यह सही बात है। सांप्रदायिकता पर चयनित दृष्टिकोण ठीक नहीं है। इसी दौरान और भी सांप्रदायिक घटनाएं हुई हैं, उन पर ये साहित्कार चुप क्यों रहे? सांप्रदायिक घटनाओं में मारे गए हिन्दुओं के प्रति किसी प्रकार की सहानुभूति का न होना, जाहिर करता है कि सम्मान लौटाने की राजनीति कर रहे साहित्यकारों की धर्मनिरपेक्षता पाखंड है। उनका असल मकसद साहित्य को आधार बनाकर राजनीति करना है।

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

देश की एकता सर्वोपरि

 इ स दशहरे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने नब्बे वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने १९२५ में संघ का बीज बोया था, आज वह वटवृक्ष बन गया है। सम्पूर्ण समाज में संघ की शाखाएं व्याप्त हो चुकी हैं। यह संघ की उपलब्धि है कि इतने लम्बे कार्यकाल में उसने खुद को मजबूत ही किया है, वरना ज्यादातर संगठन इतने लम्बे समय के बाद अपना अस्तित्व खो देते हैं। संघ आज भी बढ़ रहा है तो उसके पीछे संघ की कार्यपद्धति महत्वपूर्ण है। वह व्यक्ति केन्द्रित न होकर संगठन पर आधारित है। संघ के कार्यकर्ता प्रतिवर्ष विजयादशमी के अवसर पर सरसंघचालक से पाथेय प्राप्त करते हैं। नागपुर में संघ के मुख्यालय में विजयादशमी पर्व पर होने वाले सरसंघचालक के उद्बोधन की प्रतीक्षा संघ के स्वयंसेवकों के साथ-साथ समाज, राजनीति और मीडिया को भी रहती है। इस दशहरे पर संघ के वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने देश की एकता के लिए छोटी-छोटी घटनाओं को बेवजह तूल नहीं देने का आग्रह किया है।

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

किसानों के साथ शिवराज

 शि वराज सिंह चौहान ने 29 नवम्बर, 2005 को पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। सप्ताहभर बाद उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के 10 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान की छवि सहज, सुलभ और सरल व्यक्तित्व के मुख्यमंत्री की है। अपने व्यवहार से वे इस बात को साबित भी करते रहते हैं। भारतीय जनता पार्टी अपने लोकप्रिय मुख्यमंत्री के दस वर्ष पूरे होने पर बड़ा जश्न मनाने की तैयारी कर रही थी। लेकिन, किसानों की पीड़ा और उनके संकट को देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कहने पर यह पूरा कार्यक्रम निरस्त कर दिया गया है। शिवराज एक किसान के बेटे हैं, इसलिए किसानों के दर्द को समझ पाए हैं। सोचिए, यदि सूखे की मार झेल रहे किसानों की अनदेखी करते हुए सरकार जश्न मना रही होती तो क्या होता? मुख्यमंत्री की दस साल की कमाई एक झटके में चली जाती। सब उन्हें कठघरे में खड़ा करते? शिवराज सिंह चौहान पर सीधा आरोप लगता कि यह कैसा किसान का बेटा है, जिसे किसानों की पीड़ा दिखाई नहीं दे रही।

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

आखिर सोनिया ने बेटी प्रियंका को पीछे क्यों धकेला?

 गां धी परिवार के करीबी और वरिष्ठ कांग्रेस नेता माखनलाल पोतदार के खुलासे से कांग्रेस में गांधी परिवार के 'राजनीतिक उत्तराधिकारी' की बहस को फिर से हवा मिल सकती है। पोतदार ने दावा किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर प्रियंका गांधी को देखना चाहती थीं। वे उसकी राजनीतिक समझ की कायल थीं। इंदिरा गांधी का मानना था कि प्रियंका में नेतृत्व के गुण हैं, वह आगे चलकर एक महान नेता के तौर पर पहचानी जा सकती है। वाकया 1984 का है। इंदिरा गांधी जम्मू-कश्मीर में थीं। वहां वह मंदिर और मस्जिद, दोनों जगह गईं। मंदिर दर्शन के बाद उन्हें आभास हुआ कि उनका जीवन जल्द समाप्त होने वाला था। तब विचारमग्न इंदिरा गांधी ने पोतदार से कहा कि प्रियंका गांधी को राजनीति में आना चाहिए। इंदिरा गांधी अपनी पोती प्रियंका में खुद को देखती थीं। पोतदार ने इस बारे में अपनी किताब 'चिनार लीव्स' में विस्तार से लिखा है। उनकी किताब जल्द ही आने वाली है।

सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

'साहित्यकारों' की राजनीति : सांप्रदायिक सहिष्णुता से इनका कोई लेना-देना नहीं

 अं ग्रेजी लेखिका नयनतारा सहगल और हिन्दी कवि अशोक वाजपेयी साहित्य अकादमी की ओर से दिया गया सम्मान लौटाकर क्या साबित करना चाहते हैं? यह प्रश्न नागफनी की तरह है। सबको चुभ रहा है। वर्तमान केन्द्र सरकार के समर्थक ही नहीं, बल्कि दूसरे लोग भी सहगल और वाजपेयी की नैतिकता और विरोध करने के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने साहित्यकारों से आग्रह किया है कि सम्मान/पुरस्कार लौटाना, विरोध प्रदर्शन का सही तरीका नहीं है। भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है। लिखकर-बोलकर सरकार पर दबाव बनाइए, विरोध कीजिए। अगर आपकी कलम की ताकत चुक गई है या फिर एमएम कलबर्गी की हत्या से आपकी कलम डर गई है, तब जरूर आप विरोध के आसान तरीके अपना सकते हो। आप तो सरस्वती पुत्र हो तर्क के आधार पर सरकार को कठघरे में खड़ा कीजिए। वरना, समाज तो यही कहेगा कि आप साहित्य को राजनीति में घसीट रहे हो। सरकार की आलोचना के लिए आपके पास तर्क नहीं हैं, इसलिए संकरी गली से निकल लिए। आम और खास लोग बातें बना रहे हैं कि आप सम्मान के बूते खूब प्रतिष्ठा तो हासिल कर ही चुके हो, अब उसे लौटाकर मीडिया में सुर्खियां भी बटोर रहे हो।

शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

सरकारी दखल पर है सुप्रीम कोर्ट को आपत्ति, लेकिन 'अंकल जज' का क्या करें

 सु प्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग एक्ट (एनजेएसी) को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया है। न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता और निष्पक्षता लाने के उद्देश्य से भाजपानीत एनडीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए अगस्त-2014 में इस आयोग का गठन किया था। इसके लिए संविधान में 99वां संशोधन भी किया गया था। केन्द्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आश्चर्य जताते हुए कहा है कि न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए यह कानून जरूरी था। संसद के दोनों सदनों ने कानून को पारित किया था। उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा है कि एनजेएसी को 20 राज्यों का समर्थन प्राप्त है। इस हिसाब से देखें तो भारत में न्यायिक व्यवस्था में बदलाव की जरूरत केवल एनडीए सरकार ही नहीं बल्कि देश महसूस कर रहा है।

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

गोहत्या रोकने कानून बनाए सरकार

 दा दरी हत्याकांड के बाद से देशभर में गाय पर राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक बहस छिड़ी हुई है। खुद को सेक्युलर कहने वाले तथाकथित बुद्धि के ठेकेदार गोमांस खाने को उतावले हैं। वे गोहत्या पर प्रतिबंध के खिलाफ खूब लिख-बोल रहे हैं। शोभा डे सरीखी वाममार्ग पर प्रगतिशील महिला हिन्दुओं को उकसाने वाला बयान देती हैं- मैंने गोमांस खाया है, आओ मुझे मार डालो। फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर, पूर्व न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू, बिहार के नेता लालू प्रसाद यादव, भाजपा सरकार के केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू से लेकर विभिन्न क्षेत्रों की कई प्रमुख हस्तियों ने गोमांस पर हिन्दू समाज की भावनाओं को आहत करने वाले बयान दिए हैं। साहित्यकार भी गाय पर राजनीति करने में पीछे नहीं हैं। इस सब वितंडावाद के बीच हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गोहत्या और गोमांस बिक्री पर रोक लगाने का महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार से भी आग्रह किया है कि पूरे देश में गोहत्या और गोमांस बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाने पर विचार किया जाना चाहिए। गोमांस और उससे बने उत्पाद की बिक्री, आयात और निर्यात पर तीन माह में पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

धर्मनिरपेक्ष है समान नागरिक संहिता, सब करें समर्थन

 सु प्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता को लेकर भाजपानीत केन्द्र सरकार से सवाल पूछकर एक जरूरी बहस को जन्म दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट में क्रिश्चयन डायवोर्स एक्ट की धारा 10ए (1) को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई चल रही थी। याचिका दायर करने वाले अलबर्ट एंथोनी का सवाल है कि एक देश में एक ही मामले में अलग-अलग कानून क्यों हैं? ईसाई दंपती को तलाक लेने के लिए दो साल तक अलग-अलग रहना जरूरी है। जबकि हिन्दू मैरिज एक्ट में एक साल अलग रहने पर तलाक दे दिया जाता है। बात इसके आगे करें तो मुस्लिम पुरुष महज 'तलाक-तलाक-तलाक' कहकर ही महिला को छोड़ सकता है। वाट्सअप पर भी वह तीन बार तलाक लिख-बोल कर अपनी पत्नी को बता दे तो तलाक हो जाता है। हिन्दू और ईसाई दंपती को तलाक के लिए वाजिब कारण साबित करना होता है जबकि मुसलमानों में यह जरूरी नहीं है।

बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

सहिष्णुता पर भारत को ज्ञान न दे पाकिस्तान

 आ तंकवाद का पोषण करने वाला पाकिस्तान भारत को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान के विदेश विभाग ने बयान जारी करते हुए गजल गायक गुलाम अली और पूर्व पाक विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी का विरोध किए जाने पर चिंता जताई है। बयान में कहा गया है कि भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं दोबारा नहीं हों। पाकिस्तान को समझना चाहिए कि भारत के अभी ऐसे दिन नहीं आए हैं कि उसे दोगले देश नसीहत देने लग जाएं। भारत कल भी सहिष्णु था और आज भी सहिष्णु है। भारतीय समाज की प्रवृत्ति ही उदारवादी है। इसलिए पाकिस्तान जैसा अनुदार देश भारत को सीख दें, यह हास्यास्पद है।

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

दुष्प्रचार में जुटा 'झूठों का समूह'

प्र धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चिंता जताई है कि जब भाजपा सत्ता में होती है, झूठों का समूह दुष्प्रचार में जुट जाता है। मुंबई में डॉ. भीमराव आम्बेडकर के स्मारक का शिलान्यास करते हुए उन्होंने यह चिंता 'आरक्षण विवाद' के संदर्भ में जताई है। उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के समय भी यह समूह दुष्प्रचार में सक्रिय था। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया है कि भाजपा आरक्षण को खत्म नहीं करेगी। प्रधानमंत्री ने 'झूठों के समूह' में निश्चिततौर पर उन्हीं तथाकथित प्रगतिशीलों को चिन्हित किया होगा, जो वर्षों से भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रति अछूतों की तरह व्यवहार करते आए हैं। इस समूह को राष्ट्रवादी विचारधारा का विरोधी समूह भी कहा जा सकता है। या कहें कि 'झूठों का समूह' की अपेक्षा 'राष्ट्रवाद विरोधी समूह' कहना अधिक उचित होगा।

सोमवार, 12 अक्तूबर 2015

विकास के लिए दबेगा बटन

बि हार विधानसभा की 243 में से 49 सीट पर आज मतदान है। बीते दिनों में बिहार में हालात ऐसे बन गए हैं कि ऊंट किस ओर करवट लेगा, यह बताता बहुत मुश्किल हो गया है। विभिन्न ओपिनियन पोल भी इस बात की ताकीद करते हैं कि इस बार मतदाता के मूड को समझ पाना आसान नहीं है। कोई सर्वे महागठबंधन को बढ़त दिखा रहा है तो कोई एनडीए गठबंधन की सरकार बनने के संकेत दे रहा है। पहले चरण का चुनाव प्रचार थमने के ठीक पहले आया ज़ी मीडिया का सर्वे कहता है कि एनडीए को स्पष्ट बहुतम मिल रहा है। एनडीए के खाते में 162 सीटें आ सकती हैं। जबकि महागठबंधन 51 सीट पर सिमटता दिख रहा है।

शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

'मुसलमानों' को चाहिए पाकिस्तान से आजादी

 क श्मीर की आजादी का राग आलापने वाला पाकिस्तान अपने घर को ही नहीं संभाल पा रहा है। सोशल मीडिया पर आई तस्वीरें और वीडियो से पता चलता है कि भारतीय मूल के मुसलमानों के साथ भी पाकिस्तान में ठीक व्यवहार नहीं होता है। बंटवारे के वक्त भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों को वहां की आवाम मुहाजिर कहकर बुलाती है। मुहाजिरों को संदिग्ध नजरिए से देखा जाता है। पाकिस्तान के मुसलमानों ने उन्हें बराबरी का हक नहीं दिया है। मुहाजिरों को 'मुसलमान' ही नहीं समझा जाता है। मुहाजिरों के साथ सरकार भी भेदभाव करती है। वर्षों से इस भेदभाव से पीडि़त मुहाजिरों का दर्द अब बाहर आने लगा है। हाल में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ जब यूएन जनरल असेम्बली में कश्मीर राग आलाप रहे थे, उसी वक्त बाहर मुहाजिर पाकिस्तान से आजादी के नारे लगा रहे थे। मुहाजिरों का यह प्रदर्शन अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरें और वीडियो पाकिस्तान की पोल-पट्टी खोल रहे हैं कि वहां हिन्दुओं और दूसरे अल्पसंख्यकों के साथ भारत से गए मुसलमानों के साथ भी दोयम दर्जे का व्यवहार होता है।

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

साहित्यकारों की चयनित नैतिकता

 अं ग्रेजी लेखिका नयनतारा सहगल और हिन्दी कवि अशोक वाजपेयी साहित्य अकादमी की ओर से दिया गया सम्मान लौटाकर क्या साबित करना चाहते हैं? यह प्रश्न नागफनी की तरह है। सबको चुभ रहा है। वर्तमान केन्द्र सरकार के समर्थक ही नहीं, बल्कि दूसरे लोग भी सहगल और वाजपेयी की नैतिकता और विरोध करने के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने साहित्यकारों से आग्रह किया है कि सम्मान/पुरस्कार लौटाना, विरोध प्रदर्शन का सही तरीका नहीं है। भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है। लिखकर-बोलकर सरकार पर दबाव बनाइए, विरोध कीजिए। अगर आपकी कलम की ताकत चुक गई है या फिर एमएम कलबर्गी की हत्या से आपकी कलम डर गई है, तब जरूर आप विरोध के आसान तरीके अपना सकते हो।